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गुरुवार, 12 जुलाई 2012

नीम (Neem by Subhadra Kumari Chauhan)


सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूं तुझे l
तुहि  जानकर अति  लाभकारी  हर्ष  होता है मुझे ll
ये लहलही  पत्तियाँ हरी  शीतल  पवन  बरसा रहीं l
निज मन्द  मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं ll
हे नीम !  यद्यपि  तू  कडू नहिं रंच मात्र मिठास है l
उपकार  करना   दूसरों  का  गुण  निहारे  पास है ll
नहिं रंच मात्र सुवास है, नहिं फूलती सुन्दर कली l
कडुवे फलों  अरु  फूल में,  तू  सर्वदा  फूली फली ll
तू   सर्वगुणसंपन्न     है, तू जीव  हितकारी  बड़ी l
तू   दुखःहारी  है  प्रिये !   तू   लाभकारी   है  बड़ी ll
तू   पत्तियों  से  छाल से  भी   काम  देती  है  बड़ा l
है  कौन ऐसा घर  यहाँ  जहाँ काम तेरा नहिं पड़ा ll
वे  जन  तिहारे  ही शरण  हे  नीम ! आते हैं सदा l
तेरी कृपा  से  सुख  सहित  आनन्द  पाते  सर्वदा ll
तू  रोगमुक्त  अनेक  जन  को   सर्वदा  करती रहै l
इस  भाँति से उपकार  तू हर  एक का करती रहै ll
प्रार्थना  हरि  से करूँ, हिय  में  सदा यह आश  हो l 
जब तक रहैं नभ चन्द्र-तारे, सूर्य का परकास हो ll
तब  तक  हमारे  देश  में  तुम सर्वदा  फूला  करो l
निज वायु शीतल से पथिक जन का ह्रदय शीतल करो ll

                                 कवयित्री - सुभद्राकुमारी चौहान
                                 संग्रह - मुकुल तथा अन्य कविताएँ
                                 प्रकाशन - हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1980

* यह कविता सुभद्राकुमारी चौहान की पहली कविता है, जब उनकी उम्र नौ साल की थी. यह 'मर्यादा', जून-जुलाई, 1913 में छपी थी.

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