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मंगलवार, 28 अगस्त 2012

अयाचित झोंका (Ayachit jhonka by Vijaydevnarayan Sahi)




हो गया कम्पित शरद के शान्त, झीने ताल-सा 
      तन 
      आह, करुणा का अयाचित एक झोंका 
सान्त्वना की तरह मन की सतह पर लहरा गया
      कहाँ से उपजा ?
      कहाँ को गया ?



कवि - विजय देव नारायण साही
संकलन - मछलीघर
प्रथम संस्करण के प्रकाशक - भारती भण्डार, इलाहाबाद, 1966
दूसरे संस्करण के प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 1995

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