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बुधवार, 1 अगस्त 2012

ताला (Tala by Sanjay Shandilya)



कितना परेशान करता है यह ताला 

जब बन्द करो
बन्द नहीं होगा

खोलो हड़बड़ी में
खुलेगा नहीं
पसीना छुड़ा देगा सबके सामने

एकदम बच्चा हो गया है यह ताला 

कभी अकारण अनछुए ही
खुल जाएगा ऐसे
साफ़ हुआ हो जैसे
कोई जाला...मन का काला !


कवि - संजय शांडिल्य
संकलन - जनपद : विशिष्ट कवि 
संपादक - नन्दकिशोर नवल, संजय शांडिल्य
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2006

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