Translate

सोमवार, 24 सितंबर 2012

हवा चली (Hawa chalee by Ismail Merathi)



होनेको आयी सुबह तो ठण्डी  हवा चली, 
                क्या धीमी-धीमी चालसे यह खुश-अदा चली ll
लहरा दिया है खेतको हिलती हैं बालियाँ,
                पौधे  भी   झूमते   हैं   लचकती  हैं  डालियाँ ll
फुलवारियोंमें ताज़ा शिगूफ़ा खिला चली,
                सोया  हुआ  था  सब्ज़ा  उसे  तो  जगा चली ll
सरसब्ज़ हो दरख़्त न बाग़ोंमें तुझ बग़ैर,
                तेरे  ही  दमक़दमसे है  भायी  चमन  की सैर ll
पड़ जाय इस जहानमें तेरी अगर कमी,
                चौपाया   कोई  ज़िन्दा  बचे  औ  न  आदमी ll
चिड़ियोंको यह उड़ानकी ताक़त कहाँ रहे,
                फिर  'कायँ कायँ'  हो  न 'गुटरगूँ' न 'चहचहे' ll
बन्दोंको चाहिये कि करें बंदगी अदा,
                उसकी कि जिसके हुक्मसे चलती है यह हवा ll
             

कवि - इस्माइल मेरठी 
किताब - सितारे (हिन्दुस्तानी पद्योंका सुन्दर चुनाव)
संकलनकर्ता - अमृतलाल नाणावटी, श्रीमननारायण अग्रवाल, घनश्याम 'सीमाब'  
प्रकाशक - हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा, तीसरी बार, अप्रैल, 1952

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें