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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

बन्धु ! जरूरी है (Bandhu jaroori hai by Ramgopal Sharma 'Rudra')



बन्धु ! जरूरी है मुझको घर लौटना,
एक मुझे भी ले लो अपनी नाव पर 

देर तनिक हो गई वहाँ, बाजार में, 
मोल-तोल के भाव और व्यवहार में ;
आईना था एक अनोखी आब का,
इन्द्रजाल-सा था जिसके दीदार में ;
        मैं गरीब ले सका न अपने भाव पर 

सनक नहीं तो क्या कहिए, इस ठाट को -
कौड़ी लेकर साथ, चला था हाट को,
जहाँ प्रसाधन बिकते हैं शृंगार के ! -
कौन पूछता मुझ-जैसे बेघाट को ? 
        पड़ता रहा नमक ही मेरे घाव पर !

हल्का हूँ, कुछ खास न हूँगा भार मैं ;
निर्धन हूँ, दे सकता हूँ, बस, प्यार मैं ;
गीत सुनाऊँगा मीरा के, सूर के ;
ले लेना, जो पाऊँगा दो-चार मैं ;
        कृपा करो अब, सर धरता हूँ पाँव पर      


कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र' (1.11.1912 -19.8.1991)
किताब - रुद्र समग्र 
संपादक - नंदकिशोर नवल 
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991

आज नानाजी होते तो 100 साल के होते l उनका यह गीत मैंने उनके स्वर में सुना है और अक्सर अपनी माँ व सबसे छोटी बेबी मौसी के स्वर में भी l हम भाई-बहनों के लिए यह काफी जाना-पहचाना है और आज नानाजी को याद करते हुए एक बार फिर गुनगुनाने का मन कर रहा है : 
बन्धु ! जरूरी है मुझको घर लौटना,
एक मुझे भी ले लो अपनी नाव पर 

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