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रविवार, 14 अक्तूबर 2012

फ़र्ज़ करो (Farz karo by Ibne Insha)


फ़र्ज़ करो हम अहले वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों 
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों अफ़साने हों 
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता, जी से जोड़ सुनाई हो 
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी, आधी हमने छुपाई हो 
फ़र्ज़ करो तुम्हें खुश करने के ढूँढे हमने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मयख़ाने हों 
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सबकुछ माया हो 


शायर - इब्ने इंशा (1927-1978) 
किताब - इब्ने इंशा : प्रतिनिधि कविताएँ
संपादक - अब्दुल बिस्मिल्लाह
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स , दिल्ली, पहला संस्करण - 1990

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