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रविवार, 4 नवंबर 2012

घर (Ghar by Shankho Ghosh)



मन-ही-मन 
रहा हूँ खोज घर 
एक, बहुत दिनों से l
जाऊँगा जाने कब 
डूब मैं 
प्रकाश की तरलता में !

घर क्या मिला तुम्हें ?
घर तो लिया है ढूँढ़ 
बहुत दिन पहले - 
मन-ही-मन,
चाहिए घर - दुनिया के बाहर l


कवि - शंख घोष 
बांग्ला से हिन्दी अनुवाद - प्रयाग शुक्ल 
संकलन - शंख घोष और शक्ति चट्टोपाध्याय की कविताएँ 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 1987

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