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रविवार, 2 दिसंबर 2012

कुछ-कुछ याद करते (Kuchh-kuchh yaad karate by Vinod Kumar Shukl)

कुछ-कुछ याद करते 
जीवन रोज बीतता रहा 
सब भुला नहीं सका 
जो याद रहता है 
उसी से कुछ भुला देता हूँ 
जो भुला देता हूँ 
उसमें से याद कर लेता हूँ 
और अपने होने को 
काम की तरह सोचता हूँ 
सोमवार से इतवार तक 
एक तारीख से इकतीस तारीख तक 
अगर बत्तीस होगी तो भी l 


कवि - विनोद कुमार शुक्ल 
संकलन - कभी के बाद अभी 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2012

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