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रविवार, 13 जनवरी 2013

एक औरत हिपेशिया भी थी (Ek aurat Hipeshiya bhee thee by Habib Tanvir)

हिपेशिया की  तक़रीर - "वो लोग जो मिर्गी के मरीज़ हैं, बस उन्हीं लोगों के अंदर चाँद अपने ठंडे असरात पैदा करता है। इसके बरअक्स वो लोग, जिनके दिमाग़ के अंदर से फूटी हुई किरनें उनके दिल तक उतर जाती हैं, वो बरगज़ीदा हैं, ऐसे ही लोगों के दिलों में वो चिनगारी होती है जिसे अक्ल कहते हैं. यही वो रौशनी है, जो दिमाग़ वाले के लिए इल्म का सबब बनती है। और जानने के लायक़ चीज़ों के लिए उनके पहचाने जाने का सबब बनती है। उसी तरह जिस तरह मामूली रौशनी हमारी नज़र में रंगों को उजागर कर देती है। रौशनी हटा लीजिए, बस फिर अँधेरे के सिवा और कुछ नहीं रह जाएगा। ...
मैं यह मानती हूँ कि कोई भी ऐसा ख़याल, जो दूसरी दुनिया का डर दिल में बिठाकर या किसी और तरीके से हुक्म लगाकर आदमी के दिमाग़ को ज़ंजीरों में जकड़ ले, वो गलत है। इससे ख़याल में बंदिश आ जाती है, तरक्क़ी के रास्ते मसदूद हो जाते हैं, रुक जाते हैं। कोई नया ख़याल पैदा होने की गुंजाइश नहीं रह जाती। नया ख़याल कहता है : अपने आपको जानो। बस नया ख़याल आज़ाद होता है। लेकिन इसका नतीजा होता है ज़िम्मेदारी। नया ख़याल अपने साथ एक ज़िम्मेदारी का अहसास पैदा करता है। या तो आप अपने ख़याल के मुताबिक़ जिएँ, और या फिर उसे खो दें, और ख़मियाज़ा भुगतें। और अगर आप अपने ख़याल के मुताबिक़ जीते हैं, तो गोया आप आज़ाद हैं। सही मायनों में आज़ाद। फिर आपको मौत भी नहीं डरा सकती, जहन्नुम भी नहीं डरा सकता, फिर दुनिया की कोई ताक़त आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।"


"दुनिया के मशहूर गणितज्ञ थियोन की बेटी हिपेशिया किसी परिचय की मोहताज नहीं है। आप जानते ही हैं कि थियो
ने गणित और खगोल के विषय  पर बहुत महत्त्वपूर्ण किताबें लिखीं। ये विद्या उन्होंने अपनी बेटी को भी सिखाई और कुछ किताबों पर साथ मिलकर भी काम किया। उनके गुजर जाने के बाद हिपेशिया ने उनसे भी ज़्यादा तरक्की की। किताबें लिखीं और अपना नाम रोशन किया। गणित, खगोल और फ़लसफ़े के सिलसिले में इस वक्त दुनिया में हिपेशिया का सानी मौजूद नहीं।"
अक्ल की दुनिया में जिस कदर भी थी
वो सब एक शख़्स में समाई थी
           एक औरत हिपेशिया भी थी।
शक्ल महताब हुस्न की पहली
जिससे दुनिया में रोशनी फैली
          एक औरत हिपेशिया भी थी।
अक्ल की वैसी दिल की भी वैसी
उसको हर शख़्स से थी हमदर्दी
आप अपनी मिसाल थी वैसी
          एक औरत हिपेशिया भी थी।
उसके क्या-क्या हुनर मैं गिनवाऊँ
कम हैं जितना भी उसके गुण गाऊँ
          एक औरत हिपेशिया भी थी।

नाटककार - हबीब तनवीर
किताब - एक औरत हिपेशिया भी थी
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2004

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