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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

हाजी लोक मक्के नूँ जान्दे (Haji lok Makke nun jande by Bulleh shah)

हाजी लोक मक्के नूँ जान्दे,
           मेरा राँझण माही मक्का,
           नी मैं कमली आँ l
मैं ते मंग राँझे दी होई आँ, मेरा बाबल करदा धक्का,
           नी मैं कमली आँ l
हाजी लोक मक्के नूँ जान्दे, मेरे घर विच्च नौ सौ मक्का,
           नी मैं कमली आँ l
विच्चे हाजी विच्चे गाज़ी, विच्चे चोर उचक्का,
           नी मैं कमली आँ l
हाजी लोक मक्के नूँ जान्दे, असाँ जाणा तख़त हज़ारे,
           नी मैं कमली आँ l
जित वल्ल यार उते वल्ल काअबा, भावें फोल किताबाँ चारे,
           नी मैं कमली आँ l

धक्का - ज़बरदस्ती                 गाज़ी - धर्म की खातिर लड़ने वाला
किताबाँ चार - चार धार्मिक ग्रन्थ (तौरेत, ज़ंबूर, अंजील एवं कुरान)


रचनाकार - बुल्ले शाह
संकलन - बुल्लेशाह की काफियां
संपादक - डा. नामवर सिंह 
श्रृंखला संपादक - डा. मोहिन्द्र सिंह 
प्रकाशक - नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज़ के सहयोग से 
अनामिका पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा.) लिमिटेड, 2003  

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