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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

नया शिवाला (Naya shivala by Iqbal)

सच कह दूँ ऐ बिरहमन ! गर तू बुरा न माने,
                             तेरे सनमकदोंके बुत हो गये पुराने ll
अपनों से बैर रखना तूने बुतों से सीखा,
                             जंगो जदल सिखाया वाअज़को भी ख़ुदाने ll
तंग आके मैंने आख़िर दैरोहरमको छोड़ा,
                              वाअज़का वाज़ छोड़ा, छोड़े तिरे फ़साने ll
             पत्थरकी मूरतोंमें समझा है तू ख़ुदा है,
             ख़ाके वतनका मुझको हर ज़र्रा देवता है ll
आ, गैरियतके पर्दे इक बार फिर उठा दें,
                               बिछड़ोंको फिर मिला दें, नक़शे दुई मिटा दें ll
सूनी पड़ी हुई है मुद्दतसे दिलकी बस्ती,
                               आ, इक नया शिवाला इस देसमें बना दें ll
दुनियाके तीरथोंसे ऊँचा हो अपना तीरथ,
                                दामने आस्मासे उसका कलस मिला दें ll
हर सुबह उठके गायें मन्तर वह मीठे मीठे,
                                सारे पुजारियोंको मय पीतकी पिला दें ll
               शक्ती भी शान्ती भी भगतोंके गीतमें है,
               धरतीके बासियोंकी मुकती पिरीतमें है ll


शायर - इक़बाल 

किताब - सितारे (हिन्दुस्तानी पद्योंका सुन्दर चुनाव)
संकलनकर्ता - अमृतलाल नाणावटी, श्रीमननारायण अग्रवाल, घनश्याम 'सीमाब'  
प्रकाशक - हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा, तीसरी बार, अप्रैल, 1952

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