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सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

नीलोफर की मुस्कान (Neelofar ki muskan by Aqram gasempar)

एक सुबह क्या गज़ब हुआ l नीलोफर जागी तो उसने देखा कि उसकी मुस्कान गायब है l उसने चप्पा-चप्पा छान मारा l तकिए के नीचे, जेब के अन्दर, अलमारी में ... जूते के डिब्बे तक को खँगाल लिया l पर वो कहीं न मिली l 
मुस्कान के बिना उसका चेहरा अच्छा नहीं लग रहा था l आँखों से चमक भी गुम हो गई थी l उसे माँ की बात याद हो आई, "मुस्कुराते बच्चों की आँखों में ही तारे चमकते हैं l"
शायद मैंने अपनी मुस्कान का ध्यान नहीं रखा l  पर अब क्या करूँ ? क्या माँ को बताना ठीक रहेगा ? पर वो तो यही कहेगी, 'अच्छी तरह याद करो कि तुमने उसे कहाँ रख छोड़ा है l'
ब...हु...त सोचा l ब...हु...त  ढूँढ़ा l बिस्तर के नीचे तक देखा पर ...
फिर चित्रों वाली अपनी कॉपी के पन्ने पलटे l कौन जाने वहीं दबी हो ?

कितने गुस्से में लग रहे हैं ये चेहरे l ये उसी ने तो बनाए थे l इतने सारे उदास चित्रों को देख उसे बहुत बुरा लगा l अपनी मुस्कान खोने के बाद पता चला कि मुस्कान के बिना कितना गन्दा लगता है l

उसने पेंसिल उठाई l और सभी चेहरों पर मुस्कान बनाने लगी l पापा के चेहरे पर बड़ी-सी मुस्कान ...माँ के चेहरे पर चमकती मुस्कान ...उड़ते आसमान के चेहरे पर एक बड़ी-सी पीली मुस्कान बनाई l अब आसमान उदास नहीं ...

बिल्ली के चेहरे पर नारंगी मुस्कान l अब वो चूहे और मछली को नहीं सताएगी l उसने सभी के माथे की सभी लकीरें पोंछ दीं l भौंहों को ज़रा ऊपर खिसका दिया l अब सबकी आँखें चमकने लगी थीं l और तो और उसने चिमनी पर भी हरी मुस्कान बना दी l कित्ती मज़ेदार लग रही है वो !

नीलोफर ज़ोर से हँसी ...और अचानक उसकी मुस्कान लौट आई l नीलोफर अपनी मुस्कान जाने कहाँ गुमा बैठी थी l पर अब देखो अपने गुड्डे-गुड़िया और खिलौनों के साथ कैसी मुस्कुराती घूम रही है !

ईरानी लेखक - अक़रम ग़ासेमपोर
हिन्दी अनुवाद - शशि सबलोक
प्रकाशक - एकलव्य, भोपाल, 2005

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