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गुरुवार, 21 मार्च 2013

बधाई (Badhai by Trilochan)

ब्राह्म काल में पूर्वा आई, कहा, "बधाई
है कवि, तुमने सैंतीस वर्षों की प्रिय कड़ियाँ 
पूरी कीं l " पर मुझे लगा बस दो ही घड़ियाँ 
अभी गई होंगी l सम्मान से झुका l "आई 
हो कैसे, क्यों कष्ट किया l" - पूछा l मुसकाई 
वह कि सज गईं इधर उधर फूलों की छड़ियाँ,
टूटा चंद्रहार रजनी का, बिखरी लड़ियाँ 
तारों की दिन की श्री जगतीतल पर छाई l 

बोली, "जो रवि उदित हुआ था साथ तुम्हारे 
उस दिन, वही जगाने जगते ही आया है l 
दैवयोग से तुम ने दिव्य मित्र पाया है 
इस जीवन में l घर या बाहर जब तुम हारे 
तुम्हें दिया अवलंब, स्निग्ध कर सदा पसारे 
इस ने दिव्य ज्योति दी है, तुम ने गाया है l" 


कवि - त्रिलोचन 
संकलन - फूल नाम है एक 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 1985

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