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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

बड़ी हो रही है लड़की (Badi ho rahi hai ladki by Raghuvir Sahai)


जब वह कुछ कहती है
उसकी आवाज़ में
एक कोई चीज़
मुझे एकाएक औरत की आवाज़ लगती है जो
अपमान बड़े होने पर सहेगी

वह बड़ी होगी
डरी और दुबली रहेगी
और मैं न होऊँगा
वे किताबें वे उम्मीदें न होंगी
जो उसके बचपन में थीं
कविता न होगी साहस न होगा
एक और ही युग होगा जिसमें ताक़त ही ताक़त होगी
और चीख़ न होगी

लम्बी और तगड़ी बेधड़क लड़कियाँ
धीरज की पुतलियाँ
अपने साहबों को सलाम ठोंकते मुसाहबों को ब्याहकर
आ रही होंगी जा रही होंगी
वह खड़ी लालच में देखती होगी उनका क़द

एक कोठरी होगी
और उसमें एक गाना जो ख़ुद गाया नहीं होगा किसी ने
क़ैदी से छीनकर गाने का हक़ दे दिया गया होगा वह गाना
कि उसे जब चाहो तब नहीं जब वह बजे तब सुनो
बार-बार एक-एक अन्याय के बाद वह बज उठता है

वह सुनती होगी मेरी याद करती हुई
क्योंकि हम कभी-कभी साथ-साथ गाते थे
वह सुर में मैं सुर के आसपास

एक पालना होगा
वह उसे देखेगी और अपने बचपन की यादें आयेंगी
अपने बचपन के भविष्य की इच्छा
उन दिनों कोई नहीं करता होगा
वह भी न करेगी



कवि - रघुवीर सहाय  
संकलन - रघुवीर सहाय : प्रतिनिधि कविताएँ  
संपादक - सुरेश शर्मा  
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1994



लड़की को बड़ी होने के पहले ही सबकुछ झेलना पड़ता है ! आज दिल्ली की दुर्घटना उस अंतहीन श्रृंखला की एक कड़ी है !



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