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बुधवार, 17 अप्रैल 2013

बिहारी सतसई में नैन (Bihari Satsai mein nain by Bihari)


कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात l 
भरे भौन में करत हैं नैननु ही सब बात ll 62 ll 


नटत = नाहीं-नाहीं करते हैं 

कहते हैं, नाहीं करते हैं, रीझते हैं, खीजते हैं, मिलते हैं, खिलते हैं और लजाते हैं l (लोगों से) भरे घर में (नायक-नायिका) दोनों ही आँखों द्वारा बातचीत कर लेते हैं l 


करे चाह-सौं चुटकि कै सरैं उड़ौहैं मैन l 
लाज नवाएँ तरफत करत खूँद-सी नैन ll 79 ll 

चुटकि कै = चाबुक मारकर 
उड़ौहैं= उड़ाकू, उड़ान भरनेवाला 
मैन = कामदेव 
खूँद = जमैती, घोड़े की ठुमुक चाल 


कामदेव ने चाह का चाबुक मारकर नेत्रों को बड़ा उड़ाकू बना दिया है l किंतु लाज (लगाम) से रोके जाने के कारण उसके नेत्र (रूपी-घोड़े) तड़फड़ाकर जमैती-सी कर रहे हैं l 


नोट - जब घोड़े को जमैती सिखाई जाती है, तब एक आदमी पीछे चाबुक फटकारकर उसे उत्तेजित करता रहता है और दूसरा आदमी उसकी लगाम कसकर पकड़े रहता है l यों घोड़ा पीछे की उत्तेजना और आगे की रोकथाम से छटपटाकर जमैती करने लगता है l 


बेधक अनियारे नयन बेधत करि न निषेधु l 
बरबट बेधत मो हियौ तो नासा कौ बेधु ll 86 ll 

बेधक = बेधनेवाला 
अनियारे = नुकीले  
निषेधु= रुकावट 
बरबट = अदबदाकर, जबरदस्ती 
नासा = नाक 
बेधु = छेद 

चुभीली नुकीली आँखें यदि ह्रदय को छेदती हैं, तो छेड़ने दे, उन्हें मना मत कर (वे ठहरी चूभॆलॆ नुकीली, बेधना तो उनका काम ही है); क्योंकि तेरी नाक का बेध - लौंग पहनने की जगह का छेद - मेरे ह्रदय को बरबस बेध रहा है - जो स्वयं बेध रहा है, यही बेध रहा है, तो फिर बेधक क्यों न बढ़े ?



कवि - बिहारी 
टीकाकार - रामवृक्ष बेनीपुरी 
किताब - बेनीपुरी ग्रंथावली
सामग्री संकलन - जितेन्द्र कुमार बेनीपुरी
संपादक - सुरेश शर्मा 
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1998


 
 

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