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रविवार, 12 मई 2013

एक्ला चलो (Ekla chalo by Rabindranath Tagore)


यदि तोर डाक शुने केउ ना आसे
          तबे एक्ला चलो रे l
एक्ला चलो, एक्ला चलो,
             एक्ला चलो रे ll
यदि केउ कथा ना कय –
      (ओरे ओरे ओ अभागा !)
यदि सबाइ थाके मुख फिराये,
      सबाइ करे भय –
             तबे पराण खुले,
ओ तुइ मुख फुटे तोर मनेर कथा,
              एक्ला बलो रे ll
यदि सबाइ फिरे जाय –
       (ओरे ओरे ओ अभागा !)
यदि गहन पथे जाबार काले
       केउ फिरे ना चाय –
              तबे पथेर काँटा
ओ तुइ रक्तमाखा चरण तले
              एक्ला दलो रे ll
यदि आलो ना घरे –
       (ओरे ओरे ओ अभागा !)
यदि झड़ बादले आँधार राते
       दुयार देय घरे –
तबे बज्रानले
आपन बुकेर पांजर ज्वालिये निये
             एक्ला ज्वलो रे ll
यदि तोर डाक शुने कोउ न आसे,
           तबे एक्ला चलो रे l
एक्ला चलो, एक्ला चलो,
              एक्ला चलो रे ll 

"यदि तेरी पुकार सुनकर कोई न आये तो तू अकेला ही चल पड़ l अरे ओ अभागा, यदि तुझसे कोई बात न करे, यदि सभी मुँह फिरा लें, सब (तेरी पुकार से) डर जायें तो तू प्राण खोलकर अपने मन की वाणी अकेला ही बोल l अरे ओ अभागा, यदि सभी लौट जायें, यदि कठिन मार्ग पर चलते समय तेरी ओर कोई फिरकर भी न देखे तो तू अपने रास्ते के काँटों को अपने खून से लथपथ चरणों द्वारा अकेला ही रौंदता हुआ आगे बढ़ l अरे ओ अभागा, यदि तेरी मशाल न जले और आँधी-तूफ़ान और बादलों से भरी रात में (तुझे देखकर) सब लोग दरवाजा बन्द कर लें तो फिर अपने को जलाकर तू अकेला ही ह्रदय-पंजर जला l यदि तेरी पुकार सुनकर कोई तेरे पास न आये तो फिर अकेला ही चलता चल, अकेला ही चलता चल l"

कवि - रवीन्द्रनाथ ठाकुर 
किताब - हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली, खण्ड 8 में संकलित 'मृत्युंजय रवीन्द्र' से 
सम्पादक - मुकुन्द द्विवेदी 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1981

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