Translate

गुरुवार, 6 जून 2013

लापता का हुलिया (Lapata ka huliya by Kunwar Narayan)


रंग गेहुआ ढंग खेतिहर 
         उसके माथे पर चोट का निशान 
क़द ५ फुट से कम नहीं 
         ऐसी बात करता कि उसे कोई ग़म नहीं l 
         तुतलाता है l 
         उम्र पूछो तो हज़ारों साल से कुछ ज़्यादा बतलाता है l 
         देखने में पागल-सा लगता - है नहीं l 
         कई बार ऊँचाइयों से गिर कर टूट चुका है 
 
         इसलिए देखने पर जुड़ा हुआ लगेगा 
                   हिन्दुस्तान के नक़्शे की तरह l 
 
 
कवि - कुँवर नारायण
संग्रह - अपने सामने 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1979

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें