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रविवार, 16 जून 2013

तुम्हारी तोतली बोली (Tumhari totali boli by Nandkishore Nawal)


तुम्हारी तोतली बोली,
तुम्हारा दूधिया दाँत,
तुम्हारा डगमगाते हुए चलना,
तुम्हारा 'पापा' कहना,
तुम्हारी बदमाशियाँ,
तुम्हारी बुद्धिमानियाँ ...

मुझे क्षण-भर नहीं भूलता है यह सब !

दिल में होता है,
मैं अभी टिकट कटाऊँ 
और तुम्हारे पास पहुँच जाऊँ l 

पर तुम्हारे दूध के पैसे जुटाता तुम्हारा बाप 
तुम तक पहुँच नहीं पाता है ;
क्षण-भर को मन भौंरे-सा उड़ता है,
फिर सरकारी फाइलों के कमल पर 
बैठ जाता है l  
            -15.5.1966




कवि - नंदकिशोर नवल
संकलन - नील जल कुछ और भी धुल गया
संपादक - श्याम कश्यप
प्रकाशक - शिल्पायन, दिल्ली, 2012


पापा ने यह कविता भैया के लिए लिखी थी .

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