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बुधवार, 17 जुलाई 2013

बरबते-शिकस्ता (Barabate-shikasta by Majaz)

उसने जब कहा मुझसे गीत इक सुना दो ना 
सर्द है फ़िज़ा दिल की, आग तुम लगा दो ना 
क्या हसीन तेवर थे, क्या लतीफ़ लहजा था 
आरज़ू थी, हसरत थी, हुक्म थी, तक़ाज़ा था 
गुनगुना के मस्ती में साज़ ले लिया मैंने 
छेड़ ही दिया आख़िर नग्म-ए-वफ़ा मैंने 
यास का धुआँ उट्ठा, हर नवा-ए-ख़स्ता से 
आह  की सदा निकली बरबते-शिकस्ता से 

लतीफ़ = कोमल        यास = निराशा 
नवा-ए-ख़स्ता = दुख भरा गीत  
बरबते-शिकस्ता = टूटा बरबत (एक वाद्ययंत्र)
शायर - 'मजाज़' लखनवी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : 'मजाज़' लखनवी   
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2001

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