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शनिवार, 20 जुलाई 2013

तेरी गली के लोग (Teri gali ke log by Habeeb 'Jalib')



तू रंग है, ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग
तू फूल है, शरार हैं तेरी गली के लोग
शरार = चिंगारी 

तू रौनके-हयात है, तू हुस्ने कायनात
उजड़ा हुआ दयार हैं तेरी गली के लोग
रौनके-हयात = जीवन की रौनक

हुस्ने कायनात = सृष्टि का सौन्दर्य

तू पैकरे-वफ़ा है, मुजस्सम ख़ुलूस है
बदनामे-रोज़गार हैं तेरी गली के लोग
पैकरे-वफ़ा = वफ़ा की साकार मूर्ति

बदनामे-रोज़गार = दुनिया भर में बदनाम

रौशन तेरे जमाल से हैं मेह्रो-माह भी
लेकिन नज़र पे बार हैं तेरी गली के लोग
मेह्रो-माह = सूरज-चाँद    बार = बोझ

देखो जो गौर से तो ज़मीं से भी पस्त हैं
यूँ आसमाँ-शिकार हैं तेरी गली के लोग

फिर जा रहा हूँ तेरे तबस्सुम को लूट कर
हरचंद होशियार हैं तेरी गली के लोग
तबस्सुम = मुस्कान   हरचंद = हालाँकि    

खो जाएँगे सेहर के उजालों में आख़िरश
शमए-सरे-मज़ार हैं तेरी गली के लोग
सेहर = सुबह    आख़िरश = आख़िरकार

शमए-सारे-मज़ार = क़ब्र पर जल रही शमा

शायर - हबीब 'जालिब'
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : हबीब 'जालिब'संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010

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