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गुरुवार, 28 नवंबर 2013

निशा-निमन्त्रण (Nisha-nimantran by Bachchan)

               रात आधी हो गयी है !

               जागता मैं आँख फाड़े,
               हाय, सुधियों के सहारे,
जबकि दुनिया स्वप्न के जादू-भवन में खो गयी है !
               रात आधी हो गयी है !

               सुन रहा हूँ, शान्ति इतनी,
               है टपकती बूँद जितनी,
ओस की जिनसे द्रुमों का गात रात भिगो गयी !
               रात आधी हो गयी है !

               दे रही कितना दिलासा,
               आ झरोखे से ज़रा-सा 
चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गयी है !
               रात आधी हो गयी है !


कवि - हरिवंशराय बच्चन
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ : हरिवंशराय बच्चन
संपादक - मोहन गुप्त
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1986

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

ख़ाली समय में (Khali samay mein by Sarveshvar Dayal Saxena)

बैठकर ब्लेड से नाख़ून काटें,
बढ़ी हुई दाढ़ी में बालों के बीच की 
ख़ाली जगह छाटें,
सर खुजलायें, जम्हुआयें,
कभी धूप में आयें,
कभी छाँह में जायें,
इधर-उधर लेटें,
हाथ पैर फैलायें,
करवट बदलें 
दायें-बायें,
ख़ाली कागज़ पर कलम से
भोंड़ी नाक, गोल आँख, टेढ़े मुँह 
की तसवीरें खींचें,
बार-बार आँख खोलें 
बार-बार मींचें,
खाँसें, खखारें 
थोड़ा-बहुत गुनगुनायें,
भोंड़ी आवाज़ में 
अख़बार की ख़बरें गायें,
तरह-तरह की आवाज़ 
गले से निकालें,
अपनी हथेली की रेखाएँ 
देखें-भालें,
गालियाँ दे-दे कर मक्खियाँ उड़ायें,
आँगन के कौओं को भाषण पिलायें,
कुत्ते के पिल्ले से हाल-चाल पूछें,
चित्रों में लड़कियों की बनायें मूंछें,
धूप पर राय दें, हवा की वकालत करें,
दुमड़-दुमड़ तकिये की जो कहिए हालत करें,

ख़ाली समय में भी बहुत-सा काम है 
क़िस्मत में भला कहाँ लिखा आराम है l 


कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
संकलन - कविताएँ-1 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1978


रविवार, 24 नवंबर 2013

मणिसर्प (Manisarp by Shrikant Verma)

मेरी बांबी से तुम ले गये 
मेरी मणि हर कर l 
मेरी - 
अनुभूति खो गयी है
अनुभूति खो गयी है 
अनुभूति खो गयी है !
अर्थहीन मन्त्रों-सा पथ पर मैं फिरता हूं 
अंधियारे की झाड़ी झुरमुट में 
लटक,
अटक,
पत्थर पर फण पटक 
रहता हूं l 
मणि के बिना मैं अंधा, अपाहिज सांप हूं l 
मेरी - 
अनुभूति खो गयी है !
अनुभूति खो गयी है !!
शब्द मर गये हैं, आवाज़ मर गयी है l 
डोल रहे शब्दहीन गीत हवा में जैसे 
वंशी की बिछुड़पन में    
प्राणों की राधा की लाज मर गयी है l 
मेरी -
अनुभूति खो गयी है ! 

मणि बिन मैं अंधा हूं l
मणि बिन मैं गूंगा हूं 
मणि बिन मैं सांप नहीं l 
मणि बिन मैं मुर्दा हूं l 

ठहरो, ठहरो, ठहरो,
मेरी बांबी मत रौंदो अपने पांवों से l 
मुझमें अब भी विष है l 
मेरा विष ही मणि बन मुझे पथ दिखायेगा l 
मेरे विष की थैली 
रत्ना, मणिगर्भा है l 
मणि लेकर मुझसे, मुझ पर मत कौड़ी फेंको l
दूध का कटोरा मत मेरे आगे रक्खो l 
विष को लग जाएगा दूध 
ज़हर मेरा मर जाएगा l 

मेरे फुफकारों की लहू की त्रिवेणी में 
डूबेंगे तीर्थ सभी 
चर्बी के पंडों के l 

मेरे दंशन से ये सोने की मुंडेरें नीली पड़ जाएंगी -
तुमने मेरी मणि को 
उल्लू की आंख बना रक्खा है l 
लेकिन मेरे विष को कैसे पी पाओगे ?
मेरी ही केंचुल से मुझी को डराओगे ?

सम्हलो ! जिन सांपों को दूध पिलाया तुमने 
मैं उनसे भिन्न हूं-
मैं अपनी मणि वापिस लेने को आया हूं l 

मैं मणि का स्वामी हूं l 
मैं मणि का  स्रष्टा हूं l 
मैं मणि का रक्षक हूं l 
तक्षक हूं, तक्षक हूं l  

कवि - श्रीकांत वर्मा 
संग्रह - भटका मेघ
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली, 1983

बुधवार, 20 नवंबर 2013

होना ( by Mahmoud Darwish)




हम यहाँ खड़े हैं. बैठे हैं. यहाँ हैं. अनश्वर यहाँ.
और हमारा बस एक ही मकसद है :
होना.
फिर हम हर चीज़ पर असहमत होंगे ;
राष्ट्रध्वज की डिजाइन पर
(बेहतर हो मेरे ज़िंदा लोगो
अगर तुम चुनो एक भोले गधे का प्रतीक)
और हम नए राष्ट्रगान पर असहमत होंगे 
(बेहतर हो अगर तुम चुनो एक गाना कबूतरों के ब्याह का)
और हम असहमत होंगे औरतों के कर्तव्य पर
(बेहतर हो अगर तुम चुनो एक औरत को सुरक्षा प्रमुख के रूप में)
हम प्रतिशत पर असहमत होंगे, निजी पर और सार्वजनिक पर,
हम हरेक चीज़ पर असहमत होंगे. और हमारा एक ही मकसद होगा :
होना...
उसके बाद  मौक़ा मिलता है और मकसद चुनने का.



फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश  
संकलन - द बटरफ्लाई'ज़ बर्डन  
प्रकाशक - कॉपर कैनियन प्रेस, वाशिंगटन, 2007
अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद - फैडी जूडा 
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद 



शनिवार, 16 नवंबर 2013

नेहरु (Nehru by Makhdoom Mohiuddin)


हज़ार रंग मिले, इक सुबू की गरदिश में 
हज़ार पैरहन आए गए ज़माने में 
मगर वो सन्दल-ओ-गुल का गुबार, मुश्ते बहार 
हुआ है वादिए जन्नत निशां में आवारा 
अज़ल के हाथ से छूटा हुआ हयात का तीर 
वो शश जेहत का असीर 
निकल गया है बहुत दूर जुस्तजू बनकर l

मुश्ते बहार = मुट्ठी भर बहार 
वादिए जन्नत निशां  = स्वर्ग के चिह्नों की घाटी में 
अज़ल = अनादि काल
शश जेहत का असीर = छः दिशाओं का बन्दी


शायर - मख़्दूम मोहिउद्दीन 
संकलन - सरमाया : मख़्दूम मोहिउद्दीन 
संपादक - स्वाधीन, नुसरत मोहिउद्दीन 
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2004

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

पहरेदार से (To a guard by Mahmoud Darwish)



(एक पहरेदार से:) मैं तुम्हें सिखाऊँगा इन्तजार करना
मेरी स्थगित मौत के दरवाजे पर
धीरज रखो, धीरज रखो
हो सकता है तुम मुझसे थक जाओ
और अपनी छाया मुझसे उठा लो
और अपनी रात में प्रवेश करो
बिना मेरे प्रेत के !

.......

(एक दूसरे पहरेदार से:) मैं तुम्हें सिखाऊँगा इन्तजार करना
एक कॉफीघर के प्रवेशद्वार पर
कि तुम सुन सको अपने दिल की धड़कन को धीमा होते, तेज़ होते
तुम शायद जान पाओ सिहरन जैसे कि मैं जानता हूँ
धीरज रखो,
और तुम शायद गुनगुना सको एक प्रवासी धुन
अन्दालुसियायी तकलीफ में, और परिक्रमा में फारसी
तब चमेली भी तकलीफ देती है तुम्हें और तुम चले जाते हो   

.......

(एक तीसरे पहरेदार से:) मैं तुम्हें इन्तजार करना सिखाऊँगा
एक पत्थर की बेंच पर, शायद
हम बताएँगे एक-दूसरे को अपने नाम. तुम शायद देख पाओ
एक ज़रूरी मुस्कराहट हम दोनों के दरम्यान:
तुम्हारी एक माँ है
और मेरी एक माँ है
और हमारी एक ही बारिश है
और हमारा एक ही चाँद है
और एक छोटी सी अनुपस्थिति खाने की मेज से.



फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश  संकलन - द बटरफ्लाई'ज़ बर्डन  प्रकाशक - कॉपर कैनियन प्रेस, वाशिंगटन, 2007
अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद - फैडी जूडा 
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद 


गुरुवार, 14 नवंबर 2013

एक मुल्क (A country by Mahmoud Darwish)



एक मुल्क पौ फटने के कगार पर,
कुछ ही पलों में
ग्रह सो जाएँगे शायरी की जुबान में.
कुछ ही पलों में हम इस लम्बे रास्ते को विदा कहेंगे
और पूछेंगे : कहाँ से हम शुरुआत करें ?
कुछ ही पलों में
हम अपने खूबसूरत पर्वत नार्सीसस को सावधान करेंगे
अपने ही प्रतिबिम्ब से उसके मोह के खिलाफ; तुम अब और 
शायरी के काबिल नहीं, इसलिए देखो
राहगीर की ओर   



फ़िलीस्तीनी कवि - महमूद दरवेश 
संकलन - द बटरफ्लाई'ज़ बर्डन 
प्रकाशक - कॉपर कैनियन प्रेस, वाशिंगटन, 2007
अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद - फैडी जूडा 

अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद