Translate

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

निशा-निमन्त्रण (Nisha-nimantran by Bachchan)

               रात आधी हो गयी है !

               जागता मैं आँख फाड़े,
               हाय, सुधियों के सहारे,
जबकि दुनिया स्वप्न के जादू-भवन में खो गयी है !
               रात आधी हो गयी है !

               सुन रहा हूँ, शान्ति इतनी,
               है टपकती बूँद जितनी,
ओस की जिनसे द्रुमों का गात रात भिगो गयी !
               रात आधी हो गयी है !

               दे रही कितना दिलासा,
               आ झरोखे से ज़रा-सा 
चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गयी है !
               रात आधी हो गयी है !


कवि - हरिवंशराय बच्चन
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ : हरिवंशराय बच्चन
संपादक - मोहन गुप्त
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1986

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें