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शनिवार, 2 अगस्त 2014

निर्वासन (Nirvasan by Girijakumar Mathur)


महताबियाँ जल-जल उठती हैं 
आस-पास चारों ओर :
अनहोनी चकाचौंध 
यहाँ, यहाँ, यहाँ -
औचक फुलझड़ियाँ। 
चकरी-सा नाच रहा मन,
या वातावरण ?
ओ निर्वासन, कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ ?



कवि - गिरिजाकुमार माथुर 
संकलन - तार सप्तक 
संपादक - अज्ञेय 
प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, पहला पेपरबैक संस्करण, 1995 

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