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गुरुवार, 13 नवंबर 2014

तेज़ी से जाती हुई (Tezi se jati hui by Sarveshvar Dayal Saxena)

तेज़ी से जाती हुई कार के पीछे 
पथ पर गिर पड़े 
निर्जीव, सूखे, पीले पत्तों ने भी 
कुछ दूर दौड़कर गर्व से कहा - 

           'हममें भी गति है 
            सुनो, हममें भी जीवन है,
            रुको, रुको,
            हम भी साथ चलते हैं -
            हम भी प्रगतिशील हैं !'

लेकिन उनसे कौन कहे :
प्रगति पिछलग्गूपन नहीं है 
और जीवन आगे बढ़ने के लिए 
दूसरों का मुँह नहीं ताकता। 



कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 
संकलन - कविताएँ - 1 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1978 

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