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रविवार, 25 जनवरी 2015

आटे-दाल का भाव (Aate-daal ka bhaav by Nazeer Akabarabadi)


आटे के वास्ते हैं हविस मुल्क-ओ-माल की 
आटा जो पालकी है तो है दाल नाल की 
आटे ही दाल से है दुरुस्ती ये हाल की 
इसे ही सबकी ख़ूबी जो है हाल क़ाल की 
सब छोड़ो बात तूति-ओ-पिदड़ी व लाल की 
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो आटे-दाल की 

इस आटे-दाल ही का जो आलम में है ज़हूर 
इससे ही मुँहप नूर है और पेट में सरूर 
इससे ही आके चढ़ता है चेहरे पे सबके नूर 
शाह-ओ-गदा अमीर इसी के हैं सब मजूर 
सब छोड़ो बात तूति-ओ-पिदड़ी व लाल की 
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो आटे-दाल की 

क़ुमरी ने क्या हुआ जो कहा "हक़्क़े-सर्रहू"
और फ़ाख़्ता भी बैठके कहती है "क़हक़हू"
वो खेल खेलो जिससे हो तुम जग में सुर्ख़रू 
सुनते हो ए अज़ीज़ो इसी से है आबरू 
सब छोड़ो बात तूति-ओ-पिदड़ी व लाल की 
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो आटे-दाल की … 




शायर - नज़ीर अकबराबादी 
संकलन - नज़ीर की बानी 
संपादक - फ़िराक़ गोरखपुरी
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 1999

गुरुवार, 15 जनवरी 2015

अब क्या देखें राह तुम्हारी (Ab ky dekhein raah tumhari by Faiz Ahmad Faiz)

अब  क्या देखें राह तुम्हारी 
बीत चली है रात 
छोड़ो 
छोड़ो ग़म की बात 
थम गये आँसू 
थक गईं अँखियाँ 
गुज़र गई बरसात 
बीत चली है रात 

छोड़ो 
छोड़ो ग़म की बात 
कब से आस लगी दर्शन की 
कोई न जाने बात 
बीत चली है रात 
छोड़ो ग़म की बात 

तुम आओ तो मन में उतरे 
फूलों की बारात 
बीत चली है रात 
अब  क्या देखें राह तुम्हारी 
बीत चली है रात 


शायर - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ 
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ 
प्रकाशन - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1984