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बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

फूलमंडनी (Phoolmandani by Chheetswami)

फूलनि के भवन गिरिधर नवल नगरी,
फूल सिंगार करि अति ही राजै। 
फूल की पाग सिर स्याम के राजही,
फूल की माल हिय में बिराजै ।। 
फूल सारी, कंचुकी बनी फूल की,
फूल लहंगा निरखि काम लाजै। 
छीतस्वामी फूल-सदन, बिलसत प्यारी संग,
मिलवत अंग, अनंग दाजै ।। 



ब्रज के मंदिरों में ग्रीष्म ऋतू में लकड़ी के बने चौखटों पर फूलों के माध्यम से अत्यंत कलात्मक जाल काटे जाते हैं और उन चौखटों से भवननुमा अनेक प्रकार से महल बनाए जाते हैं, जिनमें तिदरी, छज्जे आदि वास्तुकला के अनेक नमूने होते हैं। इन कलाकृतियों को 'फूल बांगला' नाम से जाना जाता है।  इन्हीं बंगलों में देव विग्रह को विभूषित किया जाता है। 


कवि - छीतस्वामी 
संकलन - अष्टछाप कवि और उनकी रचनाएं : छीतस्वामी 
संपादक - डा. वसंत यामदग्नि 
प्रकाशक - प्रकाशन विभाग, दिल्ली, 2003 

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

मेरे सहचर मित्र (Mere sahchar mitra by Muktibodh)

मेरे सहचर मित्र
ज़िन्दगी के फूटे घुटनों से बहती 
रक्तधार का ज़िक्र न कर,
क्यों चढ़ा स्वयं के कन्धों पर 
यों खड़ा किया 
नभ को छूने, मुझको तुमने। 
अपने से दुगुना बड़ा किया 
मुझको क्योंकर ?
गम्भीर तुम्हारे वक्षस्थल में 
अनुभव-हिम-कन्या 
गंगा-यमुना के जल की 
पावन शक्तिमान् लहरें पी लेने दो। 
ओ मित्र, तुम्हारे वक्षस्थल के भीतर के 
अन्तस्तल का पूरा विप्लव जी लेने दो। 
उस विप्लव के निष्कर्षों के 
धागों से अब 
अपनी विदीर्ण जीवन-चादर सी लेने दो। ...


कवि - मुक्तिबोध 
संकलन - चाँद का मुँह टेढ़ा है 
प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 2001 

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

बाँसुरी की फूँक (Bansuri ki foonk by Nandkishore Nawal)


जिस छिद्र में फूँक भरने से 
मेरी बाँसुरी बजती है,
तुमने उसी में फूँक भरी है। 

उस फूँक से जो स्वर निकलेगा,
उससे सारा जंगल हिल उठेगा। 
पक्षी बोल उठेंगे,
हवा चल पड़ेगी,
फूल खिल उठेगा। 
                    - 7. 3. 1976 



कवि - नंदकिशोर नवल 
किताब - पथ यहाँ से अलग होता है 
संपादक - राकेश रंजन 
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2014