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सोमवार, 9 मार्च 2015

जी देखा है, मर देखा है (Jee dekha hai, mar dekha hai by Habeeb 'Jalib')

जी देखा है, मर देखा है
हमने सब कुछ कर देखा है

बर्गे-आवारा की सूरत 
रेंज-ख़ुश्को-तर देखा है

ठंडी आहें भरनेवालों 
ठंडी आहें भर देखा है

तिरी ज़ुल्फ़ों का अफ़साना 
रात के होंटों पर देखा है

अपने दीवानों का आलम 
तुमने कब आकर देखा है !

अंजुम की ख़ामोश फ़िज़ा में 
मैंने तुम्हें अकसर देखा है

हमने बस्ती में 'जालिब'
झूठ का ऊँचा सर देखा है। 



शायर - हबीब 'जालिब'
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : हबीब 'जालिब'
संपादक - नरेश नदीम 
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010 

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