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गुरुवार, 14 मई 2015

मैं डरता हूँ मुसर्रत से (Main darta hoon musarrat se by Meeraji)

मैं डरता हूँ मुसर्रत से 
कहीं ये मेरी हस्ती को 
परीशाँ, कायनाती नग्म-ए-मुबहम में उलझा दे 
कहीं ये मेरी हस्ती को बना दे ख़्वाब की सूरत !

मेरी हस्ती है इक ज़र्रा
कहीं ये मेरी हस्ती को चखा दे मेह्रे-आलमताब का नश्शा !
सितारों का अलमबरदार कर देगी मुसर्रत मेरी हस्ती को 
अगर फिर से उसी पहली बलन्दी से मिला देगी 
तो मैं डरता हूँ - डरता हूँ 
कहीं ये मेरी हस्ती को बना दे ख़्वाब की सूरत !

मैं डरता हूँ मुसर्रत से 
कहीं ये मेरी हस्ती को 
भुलाकर तल्खियाँ सारी 
बना दे देवताओं सा 
तो फिर मैं ख़्वाब ही बनकर गुज़ारूँगा
जमाना अपनी हस्ती का। 


मुसर्रत = आनंद 
हस्ती = जीवन, अस्तित्व 
परीशाँ = बिखरा हुआ 
कायनाती = सृष्टि में व्याप्त  
नग्म-ए-मुबहम = अस्पष्ट गीत 
मेह्रे-आलमताब = दुनिया को आलोकित करनेवाला सूरज 
अलमबरदार = ध्वजवाहक 
तल्खियाँ = कड़वाहटें


शायर - मीराजी 
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मीराजी 
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010


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