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शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

सुनो मैं तुम्हें बुला रहा हूँ (Suno main tumko bula raha hoon by Malek Haddad)

मेरे अतिरिक्त इस छिन्न-भिन्न झाड़ी के गीत भी 
मेरी बात सुनो,
मैं एक लाश के मुख से बोलता हूँ 
मेरी बात सुनो,
मैं अपने हाथ से 
जो उसके गिटार पर टूट गया है लिखता हूँ 

मैं तुम्हारा दर्पण हूँ 
हत्यारा देखने में सुंदर है। 
और मेरे पास सही कुरूपता है इस सत्य की 
जिसे कहने पर चोट लगती है। 

'चोर को पकड़ो' एक चीख है 
जो हर बार निकलती है 
जब कवि अपने संगीत के 
और शब्दों के मर्म में डूब जाता है,
जहाँ तक मेरा सवाल है, शब्द जो मैं लिखता हूँ गणित है 
कि इतने अल्जीरियाइयों को मौत के घाट उतारा गया :

'चोर को पकड़ो' एक चीख है 
जो निकलती है हर बार। 
जब सजधज कर निकलता है तुषार 
प्रतीक्षा करता है 
अति विशुद्ध सिकन्दरियाई मवेशियों की। 
प्रेम की पहिचान के लिए 
मैं केवल टेलीफ़ोन 
और स्नानघर के बाल्टे को जानता हूँ 

'चोर को पकड़ो' एक चीख है 
जो निकलती है जब कविता लिखने चलता हूँ,
हम बहादुरी स्वांग को इतिहास बनाते हैं 
हम शब्द का मनुहार और प्रेम की भिक्षा माँगते हैं 
हम एक दर्पण में स्वयं को देखते हैं। 

झोपड़ी और हृदय ?
अल्जीरिया की ऊँचाई पर है 
'सेसनी विला'
मेरे प्रेम का क़िला। 

मेरे सारे सत्य एक स्वप्न हैं 
मुझे बताया गया है कि मासूमियत बच्चों की तरफ़दार होती है 
लेकिन मैंने 
ज़िंदा 
मरे 
और बचे हुओं को गिना है 
उन्हें भूलने में हमें हज़ारों वर्ष लगेंगे। 

मेरा संगीत 
जो अल्जीरिया की भूमि पर हर जगह सो रहे हैं 
उनकी नींद में व्याघात नहीं डालना चाहता 
सेना,मैं तुम्हें बुला रहा हूँ। 

इसे याद रखो 
जब मैं निर्वासन में अपनी लाश घसीटता था 
जब मेरी निगाहें बिना तुम्हारी निगाहों से मिले 
तुम्हें देखती थीं 
और यदि मैं जब अपनी चिट्ठियाँ खोलने से पहले अख़बार खोलता हूँ 
यदि मैं गुलाब की कोमलता को अब सराहता नहीं 
यदि मेरी फिर फिर यही टेक है 
कि वे कहीं दूर मेरी बात सुनते हैं 
यदि मेरा दिल मर गया है 
और तुम्हारा मेरे लिए गुनगुना रहा है जहाँ कहीं भी तुम हो 
इसे याद रखो :
मैं उनके साथ मर चुका हूँ। 



अल्जीरियाई कवि -  मलैक हद्दाद (5. 7. 1927 - 2. 6. 1978)
संकलन - धूप की लपेट 
अनुवाद - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 
संकलन-संपादन - वीरेंद्र जैन 
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000 


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