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रविवार, 23 अप्रैल 2017

पंडिता रमाबाई सरस्वती 23.4.1858-5.4.1922 ( Pandita Ramabai Saraswati By Purwa Bharadwaj)


रमाबाई की जीवन-यात्रा विलक्षण रही है. इसका बीज तभी पड़ गया था जब महाराष्ट्र के सबसे ऊँचे माने जानेवाले कोंकणस्थ चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे उनके पिता अनंत शास्त्री डोंगरे ने समाज की प्रताड़ना की परवाह नहीं करके अपनी पत्नी लक्ष्मीबाई को संस्कृत पढ़ाना शुरू किया था. उनके इस कदम के खिलाफ उडिपी में धर्मसभा हुई थी. उसमें लगभग चार सौ विद्वानों की मौजूदगी में उन्होंने साबित कर दिया था कि स्त्रियों को संस्कृत की शिक्षा देना धर्मविरुद्ध नहीं है, लोकविरुद्ध भले हो. फिर उन दोनों ने मिलकर गंगामूल प्रदेश में एक संस्कृत केंद्र स्थापित किया - कोलाहल से दूर पश्चिमी घाट की चोटी पर स्थित जंगल में. वहीं रमाबाई का जन्म हुआ था. उनकी एक बड़ी बहन थी कृष्णाबाई और बड़ा भाई था श्रीनिवास.

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

कड़वा मन (By Purwa Bharadwaj)

मन कड़वा होता है। खट्टा होता है। यह सच्चाई है। (यकीनन मीठा भी होता है, लेकिन अभी उसका भाव पटल पर नहीं है।)  कितना भी यह समझाओ अपने आप को कि यह क्षणिक है, आवेग है, आवेश है, समय के साथ तकलीफ चली जाएगी, तो भी मन में फाँस रह जाती है। अक्सर करीबी या परिचित के संदर्भ में यह अटक रह जाती है।

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

सैर और दस्तरख़्वान (By Purwa Bharadwaj)

इन दिनों सुबह की सैर को नियमित करने का भरपूर प्रयास कर रही हूँ। पहली वजह अपना स्वास्थ्य ठीक रखने का दबाव है और दूसरी वजह है प्रिंगल रानी के लिए हवाखोरी की ज़रूरत। तीसरी वजह भी है और वह है अपने साथ होने का अहसास।

यह सिलसिला कितने दिन तक चलेगा उसे लेकर चिंता है, मगर ना से हाँ सही मानकर खुश हूँ। आज काफी देर तक मैं कल रात के खाने के बारे में सोचती रही। कल इरादा किया था कि फ्रिज को पूरा खाली कर देना है। कोने-कोने में, छोटे-बड़े डिब्बे में जो कुछ पड़ा है, उसे निपटा देना है। जिम्मेदारी अकेले मेरी नहीं थी, पूरा घर शामिल था। अपूर्व बिना ना-नुकुर के कुछ भी खा लेते हैं। बासी को लेकर नखरा मेरा भले हो, घर में और किसी का नहीं है। बेटी तो खाती ही रहती है। तीन दिन पहले का पिज़्ज़ा और चार दिन पुरानी कढ़ी वह चाव से खा लेती है। उसके लिए गर्म केवल भात होना चाहिए।