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शनिवार, 1 नवंबर 2025

खुश होऊँ क्या ! नाखुश भी क्या !! (Khush houn kya by Ramgopal Sharma 'Rudra')


खुश होऊँ क्या ! नाखुश भी क्या !!


फिर आज गगन भर आया है,

स्वाती का मन ढर आया है;

पर कौन करे स्वागत इनका ?

पिंजड़े का बोल पराया है!

पथराई आँखों को घन क्या,

बिजली क्या, इंद्रधनुष भी क्या !!

 

जिनकी सुध ही से मोर मगन 

चलते थे नाच किये बन-बन ,

जब टूट गए नुपुर के सुर,

तब आए तो क्या आए घन ! 

पंखिल चाँदों की पतझड़ को

दल क्या, दूर्वा क्या, कुछ भी क्या !!



कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
किताब - रुद्र समग्र में संकलित '
मूर्च्छना' संग्रह से 
संपादक - नंदकिशोर नवल
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991