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गुरुवार, 30 अगस्त 2012

हिसाब (Hisab by Taslima Nasreen)



कितना दिया प्रेम,
कितने गुलाब-गुच्छ,
कितना समय, कितना सुमद्र,
कितनी रातें काटीं निद्राहीन मेरे लिए
कितने बहाए अश्रु -
यह सब जिस दिन घनघोर आवेग में 
सुना रहे थे मुझे,
समझाना चाह रहे थे कि कितना
प्रेम करते हो मुझे, उसी दिन
लिया था समझ मैंने कि अब
तुम रत्ती भर प्यार नहीं करते मुझे.
प्रेम ख़त्म होने पर ही मनुष्य बैठता है
करने हिसाब, तुम भी बैठे हो.
प्रेम तभी तक प्रेम है
जब तक वह रहता है अंधा, बधिर,
जब तक वह रहता है बेहिसाब.


कवयित्री - तसलीमा नसरीन 
बाँगला भाषा से हिन्दी अनुवाद - प्रयाग शुक्ल 
संकलन - मुझे देना और प्रेम
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2012