श्रीगणेशायनमः
अथ इन्द्रसभा अमानत
प्रारम्भ :
सभा में दोस्तो इन्दर की आमद आमद है l परीजमालों के अफ्सर की आमद आमद है
ख़ुशी से चहचहे लाज़िम है सूरते बुलबुल l अब इस चमन में गुलेतर की आमद आमद है
फ़रोगे हुस्न से आँखों को अब करो रौशन l ज़मी पै मेहर मुनव्वर की आमद आमद है
दुजानू बैठो करीने के साथ महिफ़िल में ll परी की देव की लश्कर की आमद आमद है
ज़मीं पै आयेंगी राजा के साथ परियाँ ll सितारों के महे अनवर की आमद आमद है
ग़ज़ब का गाना है और नाच है क़यामत का l बहारे फ़ितूनए महिशर की आमद आमद है
बयाँ मैं राजा की आमद का क्या करूं उस्ताद l जिगर की जान की दिलबर की आमद आमद है
चौबोला अपने हस्बेहाल ज़बानी राजा इन्द्र के.
राजा हूं मैं कौम का और इन्दर मेरा नाम ll बिन परियों की दीद के मुझे नहीं आराम
सुनो रे मेरे देव रे दिल को नहीं करार ll जल्दी मेरे वास्ते सभा करो तैयार
तख़्त बिछाओ जगमगा जल्दी से इस आन l मुझ को शबभर बैठना महिफ़िल के दर्म्यान
मेरो सिंगल दीप में मुल्कों मुल्कों राज l जी मेरा है चाहता कि जलसा देखूं आज
लाओ परियों को अभी जल्दी जाकर हाँ l बारी बारी आन कर मुजरा करैं यहाँ
आमद पुखराज परी की बीच सभा के.
महिफ़िले राजा में पुखराज परी आती है l सारे माशूक़ों की सिरताज परी आती है
जिस का साया न कभी ख़्वाब में देखा होगा आदमीज़ादों में वह आज परी आती है
दौलते हुस्न से हो जायगा आलम मामूर ll करने इस बज़्म में अब राज परी आती है
रंग हो ज़र्द हसीनों का न क्यों कर उस्ताद ll गुल है महिफ़िल में कि पुखराज परी आती है
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लेखक - सैयद आग़ा हसन 'अमानत'
स्रोत - नटरंग, खंड-23, अंक-91
संस्थापक संपादक - नेमिचंद्र जैन
संपादक - अशोक वाजपेयी, रश्मि वाजपेयी
अतिथि संपादक - पीयूष दईया
सैयद आग़ा हसन अमानत (1815-1858) उर्दू के मशहूर शायर और नाटककार हैं. उनका संगीत नाटक इन्द्रसभा (या इन्दर सभा) 1852 में रचा गया था. महेश आनंद बताते हैं कि इसमें "मध्ययुगीन पारंपरिक नाट्यरूपों-रामलीला, रासलीला, भड़ैती, भगतबाजी और शहरी परम्परा में से दास्तानगोई की बैठकों, मरसियाख़्वानी और मुजरों की महफ़िलों के तत्त्व शामिल" किए गए हैं. इसके आधार पर 1932 में इसी नाम से फिल्म बनी थी. कई भाषाओं में इसका अनुवाद भी किया गया है.