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गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

अहिंसा (Ahinsa by Kedarnath Agrawal)

मारा गया 
           लूमर लठैत 
पुलिस की गोली से 
किया था उसने कतल 
उसे मिली मौत 
किया था कतल पुलिस ने 
उसे मिला इनाम 

प्रवचन अहिंसा का 
हो गया नाकाम। 


कवि - केदारनाथ अग्रवाल 
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ 
संपादक - अशोक त्रिपाठी 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 2010 

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

केन किनारे (Ken kinare by Kedarnath Agrawal)

केन किनारे
पल्थी मारे
पत्थर बैठा गुमसुम !
सूरज पत्थर 
सेंक रहा है गुमसुम !
साँप हवा में 
झूम रहा है गुमसुम !
पानी पत्थर 
चाट रहा है गुमसुम !
सहमा राही 
ताक रहा है गुमसुम !


कवि - केदारनाथ अग्रवाल 
संकलन - कविता नदी 
संपादक - प्रयाग शुक्ल 
प्रकाशक - महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए 
                किताबघर प्रकाशन, दिल्ली, 2002

सोमवार, 4 नवंबर 2013

हम उजाला जगमगाना चाहते हैं(Hum ujala jagmagana chahte hain by Kedarnath Agrawal)



हम उजाला जगमगाना चाहते हैं 
अब अँधेरे को हटाना चाहते हैं 

हम मरे दिल को जिलाना चाहते हैं 
हम गिरे सिर को उठाना चाहते हैं 

बेसुरा स्वर हम मिलाना चाहते हैं 
ताल-तुक पर गान गाना चाहते हैं 

हम सबों को सम बनाना चाहते हैं 
अब बराबर पर बिठाना चाहते हैं 

हम उन्हें धरती दिलाना चाहते हैं 
जो वहाँ सोना उगाना चाहते हैं 
                          -   28.9.46 

कवि - केदारनाथ अग्रवाल 
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ 
संपादक - अशोक त्रिपाठी 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 2012

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

हम जियें न जियें दोस्त (Hum jiyein na jiyein dost by Kedarnath Agrawal)

हम जियें न जियें दोस्त
तुम जियो एक नौजवान की तरह,
खेत में झूम रहे धान की तरह,
मौत को मार रहे बान की तरह l
हम जियें न जियें दोस्त 
तुम जियो अजेय इंसान की तरह 
मरके इस रण में अमरण
आकर्ण तनी 
       कमान की तरह !   
                            - 9.8.1961

कवि - केदारनाथ अग्रवाल 
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ 
संपादक - अशोक त्रिपाठी 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 2012

शनिवार, 31 अगस्त 2013

कटुई का गीत (Katui ka geet by Kedarnath Agrawal)


काटो काटो काटो करबी 
साइत और कुसाइत क्या है 
जीवन से बढ़ साइत क्या है 

काटो काटो काटो करबी 
मारो मारो मारो हँसिया 
हिंसा और अहिंसा क्या है 
जीवन से बढ़ हिंसा क्या है 

मारो मारो मारो हँसिया 
पाटो पाटो पाटो धरती 
धीरज और अधीरज क्या है 
कारज से बढ़ धीरज क्या है 

पाटो पाटो पाटो धरती 
काटो काटो काटो करबी 
                             -1946 


कवि - केदारनाथ अग्रवाल 
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ 
संपादक - अशोक त्रिपाठी 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 2012 

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

धूप का गीत (Dhoop ka geet by Kedarnath Agrawal)

धूप धरा पर उतरी
जैसे शिव के जटाजूट पर
नभ से गंगा उतरी l
धरती भी कोलाहल करती
तम से ऊपर उभरी
धूप धरा पर बिखरी l

बरसी रवि की गगरी,
जैसे ब्रज की बीच गली में
बरसी गोरस गगरी l
फूल-कटोरों-सी मुसकाती
रूप भरी है नगरी
धूप धरा पर निखरी l

कवि - केदारनाथ अग्रवाल 
संग्रह - पदचिह्न 
संपादक - नंदकिशोर नवल, संजय शांडिल्य 
प्रकाशक - दानिश बुक्स, दिल्ली, 2006

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

दीप की लौ-से दिन (Deep ki lau-se din by Kedarnath Agrawal)



भूल सकता मैं नहीं 
ये कुच-खुले दिन,
ओंठ से चूमे गए,
उजले, धूले दिन -
जो तुम्हारे साथ बीते 
रस-भरे दिन,
बावरे दिन,
दीप की लौ-से 
गरम दिन l 


कवि - केदारनाथ अग्रवाल (1911-2000)
संकलन - पदचिह्न 
संपादक - नंदकिशोर नवल, संजय शांडिल्य 
प्रकाशक - दानिश बुक्स, दिल्ली, 2006