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शुक्रवार, 23 मई 2014

पुलकित-कुलकित (Pulkit-kulkit by Nagarjun)

पुलकित-कुलकित 
उलसित, हुलसित 
कुहकित, कुंचित 
पंत सुमित्रानंदन 
नरम नरम-सी तुनक तरल-सी 
समयोचित पद्यावलियों से 
गाते हैं गुणगाथा 
हिला-डुलाकर, कुंचित कंपित माथा !



कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1 
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003

गुरुवार, 15 मई 2014

खूब फँसे हैं नंदा जी (Khoob fanse hain Nandaji by Nagarjun)

डाल दिया है जाने किसने फंदा  जी !

कैसे हज़म करेगा लीडर लाख-लाख का चंदा जी ?
कैसे चमकेगा सेठों का दया-धरम का धंधा जी ?
कैसे तुक जोड़ेगा फिर तो मेरे जैसा बंदा जी ?
रेट बढ़ गया घोटाले का, सदाचार है मंदा जी !
कौन नहीं है भ्रष्टाचारी, कौन नहीं है गंदा जी ?
बुरे फँसे हैं नंदा जी !
डाल दिया है जाने किसने फंदा  जी !




कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

बप्प रे बप्प ! बाप्प रे बाप्प !! (Bapp re bapp ! baapp re baapp by Nagarjun)




पूरा ट्रक ! इतने चन्दन 
बप्प रे बप्प ! बाप्प रे बाप्प !!
पूरा हॉल ! इतने चन्द्रानन ?
बप्प रे बप्प ! बाप्प रे बाप्प !!
पूरा आँगन ! इतने बेंग !
बप्प रे बप्प ! बाप्प रे बाप्प !!
पूरा बाग ! इतने ढेंग !
बप्प रे बप्प ! बाप्प रे बाप्प !!
बड़ा सा मुँह, छोटी सी जीभ !
बप्प रे बप्प ! बाप्प रे बाप्प !!
हाथी वाला कान, कौड़िया आँख इस्स !
बप्प रे बप्प ! बाप्प रे बाप्प !!


कवि - नागार्जुन 
किताब - पका है यह कटहल 
मैथिली से हिंदी अनुवाद - सोमदेव, शोभाकांत
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली,1995 



 

मंगलवार, 25 मार्च 2014

अपना यह देश है महान (Apna yah desh hai mahan by Nagarjun )


अपना यह देश है महाSSन !
जभी तो यहाँ चल रहा भेड़िया धसाSSन !
शब्दों के तीर हैं जीभ है कमाSSन !
सीधे हैं मजदूर और बुद्धू हैं किसाSSन !
लीडरों की नीयत कौन पाएगा जाSSन !
अपना यह देश है महाSSन !
                                      -  6.11. 1979




कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 2
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003

रविवार, 6 अक्टूबर 2013

लिट्टी इंटरनेशनल (Littee international by Nagarjun)


लालू ने 
लिट्टी को 
इंटरनेशनल बना दिया !
आप्रवासी भारतीय जुटे थे 
इंटरनेशनल हो गया था
समूचा पटना !
बड़ी गहमागहमी रही 
दो-तीन रोज़ तो 
लालू बोले :
हम चौबीस रोज 
अमेरिका रहे 
उहाँ हमें उधार का ही 
खाना लेना पडा, मजबूरी थी 
अपनी लिट्टी कहीं नहीं,
ब्रेड ही ब्रेड आगे आता था 
जाम-जेली-सौस … जी हाँ 
बहू नहीं सामने आई कहीं !

विदेशी भारतीय विदा हुए तो 
लालू ने एक-एक किलो सत्तू दिया 
और … हाँ, और 
लिट्टी बनाने का तरीका 
खुद-ब-खुद सिखलाया - 
"जी हाँ,  दिक्कत है 
गैस की आँच में नहीं -
कंडे की आँच में सिकने पर 
इसका अरिजिनल सवाद मिलेगा !
आप चाहेंगे तो आप उहाँ से 
अपना कुक (रसोइया) भेजिए,
इहाँ महीने-भर रहेगा 
सीख जाएगाSS
मगर हाँ,
एक ठो दिक्कत फिर भी रह जाएगी 
कच्चे आम की चटनी,
करोंदे का अचार 
कच्चे आँवले की चटनी …  
ई सब कइसे होगा ?
लेकिन हाँ, जाना-आना लगा रहेगा तो 
आपके तरफ का खाना-पीना 
हमारे इहाँ के लोग भी जान जाएंगे 
और हाँ, गुझिया, मालपुआ 
मिस्सी रोटी … ई सब सीखने में 
आपके कुक को कई महीने लग जाएंगे। … 
हडबडाइए नहीं 
रसे-रसे सब कुछ आपके कुक 
सीखिए लेगा नS !!"
            - 15 जनवरी, 1996



कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 2
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003


बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

बापू (Bapu by Nagarjun)

बापू दूर इस संसार से 
देव ! देव तुम उस पार से 
झाँकते हो हमें कारागार से 

हो रहा हमसे नहीं कुछ दूर भी 
देव, तव पद-पंक्तियों का अनुसरण 
मृत्युविजयी पितामह तुमसे न हम 
सीख पाए अभी जीवन या मरण

पशु-सदृश हम चर रहे 
नहीं कुछ भी कर रहे 
तुच्छ स्वार्थों के लिए ही मर रहे 
किंतु फिर भी प्यार से
देव, तुम उस पार से 
झाँकते हो हमें कारागार से l 
                                - जनवरी, 1944 



कवि - नागार्जुन 

किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1

संपादन-संयोजन - शोभाकांत 

प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003

बुधवार, 11 सितंबर 2013

पुलिस आगे बढ़ी … (Police aage badhi by Nagarjun)

चंदन का चर्खा निछावर है इस्पाती बुलेट पर 
निछावर है अगरबत्ती चुरुट पर, सिग्रेट पर 
नफ़ाखोर हँसता है सरकारी रेट पर 
फ्लाई करो दिन-रात, लात मारो पब्लिक के पेट पर !

पुलिस आगे बढ़ी -
क्रांति को संपूर्ण बनाएगी 
गुमसुम है फौज -
वो भी क्या आजादी मनाएगी 
बँध गई घिग्घी -
माथे में दर्द हुआ 
नंगे हुए इनके वायदे -
नाटक बे-पर्द हुआ !

मिनिस्टर तो फूकेंगे अंधाधुंध रकम 
सुना करेगी अवाम बक-बक-बकम 
वतन चुकाएगा जहालत की फीस 
इन पर तो फबेगी खादी नफ़ीस !
धंधा पालिटिक्स का सबसे चोखा है 
बाकी तो ठगैती है, बाकी तो धोखा है 
कंधों पर जो चढ़ा, वो ही अनोखा है
हमने कबीर का पद ही तो धोखा है !
                                         - 1978



कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 2
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003

बुधवार, 12 जून 2013

मंत्र कविता (Mantr Kavita by Nagarjun)


ओं शब्द ही ब्रह्म है 
ओं शब्द और शब्द और शब्द और शब्द 
ओं प्रणव, ओं नाद,ओं मुद्राएँ 
ओं वक्तव्य, ओं उद्गार, ओं घोषणाएँ 
ओं भाषण ...
ओं प्रवचन ...
ओं हुंकार, ओं फटकार, ओं शीत्कार 
ओं फुसफुस, ओं फुत्कार, ओं वित्कार 
ओं आस्फालन, ओं इंगित, ओं इशारे 
ओं नारे और नारे और नारे और नारे 

ओं सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ 
ओं कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं 
ओं पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग  
ओं नमक - तेल - हल्दी - जीरा - हींग 
ओं मूस की लेड़ी, कनेर के पात 
ओं डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात 
ओं कोयला - इस्पात - पेट्रोल 
ओं हमीं हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल 

ओं इदमन्नं, इमा आप:, इदमाज्यं, इदं हवि:
ओं यजमान, ओं पुरोहित, ओं राजा, ओं  कवि:
ओं क्रांति: क्रांति: क्रांति: सर्वग्वं क्रांति: 
ओं शांति: शांति: शांति: सर्वग्वं शांति: 
ओं भ्रांति: भ्रांति: भ्रांति: सर्वग्वं भ्रांति: 
ओं बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ 
ओं हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ 
ओं घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ 
ओं निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ 

ओं दलों में एक दल अपना दल, ओं 
ओं अंगीकरण, ओं शुद्धीकरण, ओं राष्ट्रीयकरण 
ओं मुष्टीकरण, ओं तुष्टीकरण, ओं पुष्टीकरण 
ओं एतराज, ओं आक्षेप, अनुशासन 
ओं गद्दी पर आजन्म वज्रासन 
ओं ट्रिब्युनल, ओं आश्वासन 
ओं गुटनिरपेक्ष सतासापेक्ष जोड़-तोड़ 
ओं छल-छद्म, ओं मिथ्या, ओं होड़महोड़ 
ओं बकवास, ओं उद्घाटन
ओं मारण - मोहन - उच्चाटन 

ओं काली काली काली महाकाली महाकाली 
ओं मार मार मार, वार न जाए खाली 
ओं अपनी खुशहाली 
ओं दुश्मनों की पामाली 
ओं मार, मार, मार, मार, मार, मार, मार 
ओं अपोजिशन के मुंड बनें तेरे गले का हार 
ओं ऐं हीँ क्लीं हूँ आङ्
ओं हम चबाएँगे तिलक और गाँधी की टाँग 
ओं तुलसीदल, बिल्वपत्र, चंदन, रूली, अक्षत, गंगाजल 
ओं शेर के दाँत, भालू के नाखून, मर्कट का फोता 
ओं हमेशा हमेशा हमेशा करेगा राज मेरा पोता 
ओं छू: छू: फू: फू: फट् फिट् फुट् शत्रुओं 
ओं शत्रुओं की छाती पर लोहा कुट् 

ओं भैरो, भैरो, भैरो, ओं बजरंगबली 
ओं बंदूक का टोटा, पिस्तौल की नली 
ओं डालर, ओं साउंड, ओं साउंड 

ओम् ओम् ओम्
ओम् धरती, धरती, धरती, व्योम् व्योम् व्योम्
ओं अष्ट धातुओं के ईंटों के भट्ठे 
ओं महामहिम, महामहो, उल्लू के पट्ठे 
ओं दुर्गा, दुर्गा, दुर्गा, तारा, तारा, तारा
ओं इसी पेट के अंदर समा जाए सर्वहारा 
हरि: ओं तत्सत् हरि: ओं तत्सत् !




कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 2
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003





बुधवार, 8 मई 2013

इत्र-मिलन (Itra-milan by Nagarjun)


इत्र-मिलन 
मित्र-मिलन 
चित्र-मिलन 
पवित्र-मिलन 
हुँ, हुँ, अ-पवित्र-मिलन 
चरित्र-मिलन ?

जी हाँ, सब-कुछ ...
दुश्चरित्र-मिलन 
थोड़ा-बहुत 
सच्चरित्र-मिलन 
कुल मिलाकर 
इत्र - मिलन l 



कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003

शुक्रवार, 29 मार्च 2013

घटकवाद की उठा-पटक है (Ghatakvaad ki utha-patak hai by Nagarjun)


चीं-चीं चें-चें चटक-मटक है 
घटकवाद की उठा-पटक है 
जै-जै राम सटाक-सटक है 
          फैल गई हिंसा की लीला 
          गंगा दूषित, जल है पीला 
          काँप रहा मजनू का टीला 
घोंट-घाँट है, घटा-घटक है 
घटकवाद है, उठा-पटक है 
          बंदूकों ने रंग जमाया 
          चरणसिंह ने भस्म रमाया 
          उधर पुलिस ने नाम कमाया 
चीं-चीं चें-चैन चटक-मटक है 
घटकवाद की उठा-पटक है 
          यम का खुला हुआ फाटक है 
          छीना-झपटी का त्राटक है 
          ठगपंथी का ही नाटक है 
जै-जै राम सटाक-सटक है 
घटकवाद की उठा-पटक है 
          नानाजी नव कामराज हैं 
          अटल प्रमुख हैं, बिना ताज हैं 
          पूर्ण क्रांति के साज-वाज हैं 
कुटिल नीति यह कूट-कटक है 
घटकवाद की उठा-पटक है 
          आरक्षण का संरक्षण क्या 
          नौकरशाही का भक्षण क्या 
          भ्रष्ट तंत्र का है लक्षण क्या 
जातिवाद की भूल-भटक है 
घटकवाद की उठा-पटक है 
           घाव घाव है, दवा नहीं है 
           घुटन घुटन है, हवा नहीं है 
           चूल्हा है, पर तवा नहीं है 
राशन सीताराम सटक है 
घटकवाद की उठा-पटक है 
           शासन का जादुई यंत्र है 
           धन-कुबेर का महा मंत्र है 
           लोकनीति है पुलिस तंत्र है 
हिंसा में क्या कहीं अटक है 
पाँच नहीं यह एक घटक है 
           खुली जीभ का जादू देखो 
           कबीरा देखो, दादू देखो 
           झग्गल देखो, लादू देखो 
करनी सीताराम सटक है 
घटकवाद की उठा-पटक है 
                               - 1978



कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 2
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003


गुरुवार, 7 मार्च 2013

छेड़ो मत इनको ! (Chhedo mat inko by Nagarjun)

जाने कहाँ-कहाँ का चक्कर लगाया होगा !
छेड़ो मत इनको 
बाहर निकालने दो इन्हें अपनी उपलब्धियाँ 
भरने दो मधुकोष 
छेड़ो मत इनको 
बड़ा ही तुनुक है मिज़ाज 
रंज हुईं तो काट खाएँगी तुमको 
छोड़ दो इनको, करने दो अपना अकाम 
छेड़ो मत इनको 
रचने दो मधुछत्र 
जमा हो ढेर-ढेर-सा शहद 
भरेंगे मधुभाँड ग़रीब बनजारे के 
आख़िर तुम तक तो पहुँचेगा ही शहद 
मगर अभी छेड़ो मत इनको !

नादान होंगे वे  
उनकी न बात करो 
मारते हैं शहद के छत्तों पे कंकड़ 
छेड़ते हैं मधु-मक्खियों को नाहक 
उनकी न बात करो, नादान होंगे वे 
कच्ची होगी उम्र, कच्चे तजरबे 
डाँट देना उन्हें, छेड़खानी करें अगर वे 
तुम तो सयाने हो न ?
धीरज से काम लो 
छेड़ो मत इनको 
करने दो जमा शहद 
भरने दो मधुकोष 
रचने दो  रस-चक्र 
छेड़ो मत इनको ! 


कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003

शनिवार, 26 जनवरी 2013

खाली नहीं और खाली (Khali nahin aur khali by Nagarjun)

मकान नहीं खाली है
दूकान नहीं खाली है
स्कूल नहीं खाली, खाली नहीं कॉलेज
खाली नहीं टेबुल, खाली नहीं मेज
खाली अस्पताल नहीं
खाली है हाल नहीं
खाली नहीं चेयर, खाली नहीं सीट
खाली नहीं फुटपाथ, खाली नहीं स्ट्रीट
खाली नहीं ट्राम, खाली नहीं ट्रेन
खाली नहीं माइंड, खाली नहीं ब्रेन

खाली है हाथ, खाली है पेट
खाली है थाली, खाली है प्लेट !                              

                                                       (1948)

कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003

बुधवार, 23 जनवरी 2013

मुकरियाँ (Mukariyan by Nagarjun)


बातन की फुलझड़ियाँ छोड़ै
बखत पड़े तो चट मुँह मोड़ै
छन में शेर, छन ही में गीदड़ 
क्या सखी साजन ? ना सखि, लीडर 

मारै मौज, मनावैं खैर 
अपन अपन से जिनका वैर 
रिखी-मुनी का देय नजीर 
क्या सखि प्रीतम ? नहीं वजीर 

चाहैं अमृत, चटावैं धूल 
वादे गए जिन्हें सब भूल 
कोई भी अब नाम न लेता 
कौन, गँजेड़ी ? ना सखि, नेता 

कल तक चढ़ा चुकी है शान 
अब रस्ते पर पड़ी अजान 
लगा रही बस रह-रह ठेस 
क्या सखि, सिल है ? ना, कांग्रेस 


कवि - नागार्जुन 
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 1
संपादन-संयोजन - शोभाकांत 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003


सोमवार, 24 दिसंबर 2012

करवटें लेंगे बूँदों के सपने (Karvatein lenge boondon ke sapne by Nagarjun)



अभी-अभी 
कोहरा चीरकर चमकेगा सूरज 
चमक उठेंगी ठूँठ की नंगी-भूरी डालें 

अभी-अभी 
थिरकेगी पछिया बयार 
झरने लग जायेंगे नीम के पीले पत्ते 

अभी-अभी
खिलखिलाकर हँस पड़ेगा कचनार 
गुदगुदा उठेगा उसकी अगवानी में 
अमलतास की टहनियों का पोर-पोर 

अभी-अभी 
करवटें लेंगे बूँदों के सपने 
फूलों के अन्दर 
फलों-फलियों के अन्दर 
                     (1964)

कवि - नागार्जुन 
संकलन - नागार्जुन : चुनी हुई रचनाएँ- 2
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 1993

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

मात्राएँ दीर्घ हैं...(Matrayein deergh hain by Nagarjun )


छंदों में तो मुश्किल से आएगा य' नाम...
मात्राएँ दीर्घ हैं, क्यों न कर लूँ प्रणाम !
बोल री पूरब, यहाँ खीझ का क्या काम ?
बच्चों की लाड़ को चाहिए ज्यादा ही दाम
मात्राएँ दीर्घ हैं, क्यों न कर लूँ प्रणाम !

यह मगर क्या हुआ ?
तुकों को छलना हुआ !
जमे नहीं मतलब
पेन का चलना हुआ !
पूर्वी फिर कहाँ गई ? कहाँ गई पूर्वा
दूब तो ओझल हुई, हाथ आई दूर्वा

चालू करूँ ट्रांजिस्टर ?
लाहोर, पेकिंङ्, मास्को, बी. बी. सी....
जी हाँ, वे भी सुनवाते हैं बंबइया गीत फ़िल्मी...
जी हाँ, रात को साढ़े ग्यारह के बाद...
जी हाँ, चालू किया ट्रांजिस्टर...
मल्का-ए-तरन्नुम नूरजहाँ गा रही
जी हाँ, सुनिए बन्धु, आप भी
जी हाँ पूर्वी तो सो गई
सो गई पुरबिया...

ढेर सारे नाम हैं उसके तो...
जी हाँ, बस करूँ अब इस वक्त
मल्काए-तरन्नुम नूरजहाँ गा रही
"मिल के खलोइए, मिलके खलोइए..."
और अपना तो अन्तर्मन
चेतना की भीतरी परतों में
अब भी गुनगुनाता है -
गुनगुनाता रहेगा शायद देर तक -
"मात्राएँ दीर्घ हैं, क्यों न कर लूँ प्रणाम ?
बच्चों की लाड़ को चाहिए ज्यादा ही दाम !
बोल री पूरब, यहाँ खीझ का क्या काम
छंदों में तो मुश्किल से आएगा य' नाम
मात्राएँ दीर्घ हैं, क्यों न कर लूँ प्रणाम "


                         कवि - नागार्जुन, 1978
                         संग्रह - पुरानी जूतियों का कोरस
                         प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 1983