मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोई l
जा तन की झाईं परै श्यामु हरित दुति होई ll 1 ll
भव-बाधा = संसार के कष्ट, जन्ममरण का दु:ख
नागरि = सुचतुरा
झाईं = छाया
हरित = हरी
दुति = द्युति, चमक
वही चतुरी राधिका मेरी सांसारिक बाधाएँ हरें-नष्ट करें, जिनके (गोरे) शरीर की छाया पड़ने से (साँवले) कृष्ण की द्युति हरी हो जाती है l
नोट - नीले और पीले रंग के संयोग से हरा रंग बनता है l कृष्ण के अंग का रंग नीला और राधिका का कांचन-वर्ण (पीला) - दोनों के मिलने से 'हरे' प्रफुल्लता की सृष्टि हुई. राधिका से मिलते ही श्रीकृष्ण खिल उठते थे l
कुटिल अलक छुटि परत मुख बढ़िगौ इतौ उदोत l
बंक बकारी देत ज्यौं दामु रुपैया होत ll 37 ll
कुटिल = टेढ़ी
कुटिल = टेढ़ी
अलक = केश-गुच्छ, लट
उदोत = कान्ति, चमक
बंक = टेढ़ी
दाम = दमड़ी
छुटि परत = बिखरकर झूलने लगता है
बकारी = टेढ़ी लकीर जो किसी अंक के दाईं ओर उसके रुपया सूचित करने के लिए खींच दी जाती है l
मुख पर टेढ़ी लट के छुट पड़ने से (नायिका के मुख की) कान्ति वैसे ही बढ़ गई है, जैसे टेढ़ी लकीर (बकारी) देने से दाम का मोल बढ़कर रुपया हो जाता है l
नोट - दाम )1 यों लिखते हैं और रुपया 1 ) यों l अभिप्राय यह है कि यही बाल स्वाभाविक ढंग से पीछे रहने पर उतना आकर्षक नहीं होता जितना उलटकर मुख पर पड़ने से होता है l जैसे, बिकारी (बकारी) अंक के पीछे रहने पर दाम का सूचक है और आगे रहने पर रुपए का l
बेसरि मोती दुति-झलक परी ओठ पर आइ l
चूनौ होइ न चतुर तीय क्यों पट पोंछयो जाइ ll 88 ll
बेसरि = नाक की झुलनी, बुलाक
पट = कपड़ा
बेसर में लगे हुए मोती की आभा की (सफेद) परछाईं तुम्हारे ओठों पर पड़ी है l हे सुचतुरे! वह चूना नहीं है (तुमने जो पान खाया है, उसका चूना ओठों पर नहीं लगा है), फिर वह कपड़े से कैसे पोंछी जा सकती है ?
नोट - नायिका के लाल-लाल होठों पर नकबेसर के मोटी की उजली झलक आ पड़ी है, उसे वह भ्रमवश चूने का दाग समझकर बार-बार पोंछ रही है; किन्तु वह मिटे तो कैसे ?
कवि - बिहारी
टीकाकार - रामवृक्ष बेनीपुरी
किताब - बेनीपुरी ग्रंथावली
सामग्री संकलन - जितेन्द्र कुमार बेनीपुरी
संपादक - सुरेश शर्मा
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1998
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