ग्रीष्म फिर आ गया
फिर हरे पत्तों के बीच
खड़ी है वह
ओंठ नम
और भरा-भरा-सा चेहरा लिये
बदली की रोशनी-सी नीचे को देखती
निरखता रह
उसे कवि
न कह
न हँस
न रो
कि वह
अपनी व्यथा इस वर्ष भी नहीं जानती।
- 1959
कवि - रघुवीर सहाय
संकलन - रघुवीर सहाय : प्रतिनिधि कविताएँ
संपादक - सुरेश शर्मा
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1994
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