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रविवार, 6 जून 2021

सैर पर वापसी (Sair par wapsi by Purwa Bharadwaj)

सुबह की सैर पर फिर से जाने लगना कुछ वैसा ही है जैसे आपने अपने पर लगाए लॉकडाउन में ढील दे दी हो। तीन दिन पहले जब मैं निकली तो लगा कि ऑक्सीजन तो है, शायद मैंने उसको लेना छोड़ दिया था। तभी मैंने अपने को टोका कि ऑक्सीजन की कमी तो वाकई हुई जिससे कितने लोग पार नहीं पा सके। शायद उनके हिस्से का बचा हुआ ऑक्सीजन अब हम ले रहे हैं! यह कितना बड़ा अपराधबोध है! 

तब भी जीवन तो चलता ही है। उसकी गति बढ़ाते हुए सैर पर लौटना सचमुच सुकून लेकर आया। कुत्तों और बंदरों से बचते बचाते वापस सही सलामत लौट आना रणक्षेत्र से वापसी जैसा होते हुए भी। इसमें कोई वीरता का भाव नहीं है क्योंकि कुत्तों और बंदरों की अनजान के प्रति आशंका, उनकी ऊब और खान पान की कमी पर भी ध्यान जाता है। आज जब रामजस कॉलेज के फाटक के सामने 4 कुत्तों के झुंड ने घेरा तो हमारी प्रिंगल डर से गोद में चढ़ने को हुई। दूसरी तरफ एक लड़का हस्की को लेकर जा रहा था। उसने मुझे इशारा किया कि मैं सड़क के उस छोर से जाऊँ। मैंने कदम आगे पीछे करना चाहा तो दो जगह कुत्तों ने भात उगल रखा था और एक जगह टट्टी कर रखी थी। उसे पार करने में मन भिनभिना रहा था। वह लड़का सदाशयता में अपने हस्की का पट्टा थामे रुक गया था, मगर हस्की के करीब से निकलना भी मुझे सुरक्षित नहीं लग रहा था। चार-पाँच मिनट की पैंतरेबाजी के बाद कुत्तों का झुंड ही वापस हो गया। रामजस कॉलेज के हाते में। विद्यार्थियों और शिक्षकों से भले वह हाता सूना हो, मगर सिक्योरिटी गार्ड के साथ कुत्तों ने उसे आबाद कर रखा है। यह सैर से लौटते समय  की बात है। जाते समय एकदम सन्नाटा था। इतना कि मास्क उतार देने का मन कर रहा था।