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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

अक्टूबर (October - section I by Louise Glück)

फिर से शीतऋतु, फिर ठण्ड

क्या फ्रैंक फिसला नहीं था बर्फ पर

क्या उसका ज़ख्म भर नहीं गया था? क्या वसंत के बीज रोपे नहीं गए थे

 

क्या रात खत्म नहीं हुई थी

क्या पिघलती बर्फ ने

भर नहीं दिया था तंग गटर को

क्या मेरी देह

बचा नहीं ली गई थी, क्या वह सुरक्षित नहीं थी

क्या ज़ख्म का निशान अदृश्य बन नहीं गया था

चोट के ऊपर

दहशत और ठण्ड

क्या वे बस खत्म नहीं हुईं, क्या आँगन के बगीचे की

कोड़ाई और रोपाई नहीं हुई

मुझे याद है धरती कैसी महसूस होती थी, लाल और ठोस

तनी कतारें, क्या बीज रोपे नहीं गए थे

मैं तुम्हारी आवाज़ सुन नहीं पा रही हूँ,

हवाओं की चीख के चलते, नंगी ज़मीन पर सीटीयां बजाती हुई

मैं और परवाह नहीं करती

कि यह कैसी आवाज़ करती है

मैं कब खामोश कर दी गई थी, कब पहली बार लगा

बिल्कुल बेकार उस आवाज़ का ब्योरा देना

वह कैसी सुनाई पड़ती है बदल नहीं सकती जो वह है---

क्या रात ख़त्म नहीं हुई, क्या धरती महफूज़ न थी

जब उसमें रोपाई हुई

क्या हमने बीज नहीं बोए,

क्या हम धरती के लिए ज़रूरी न थे,

अंगूरबेल,क्या उनकी फसल काटी नहीं गई?     

  • अमेरिकी कवयित्री - लुइज़ ग्लुक, 2020 की साहित्य की नोबेल पुरस्कार विजेता 
  • अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद 

 स्रोत -    https://poets.org/poem/october-section-i