Translate

शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

मर्म (Marm by Raghuvir Sahay)

तू हतविक्रम श्रमहीन दीन

निज तन के आलस से मलीन

माना यह कुंठा है युगीन

        पर तेरा कोई धर्म नहीं ?

 

यह रिक्त-अर्थ उन्मुक्त छंद 

संस्मरणहीन जैसे सुगंध,

यह तेरे मन का कुप्रबंध 

         यह तो जीवन का मर्म नहीं ।


कवि - रघुवीर सहाय

किताब - रघुवीर सहाय रचनावली

संपादक - सुरेश शर्मा

प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली