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गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

पहाड़ी ढलान (By Nina Cassian)



कितने तुच्छ हैं हम
और कितने उतावले
और कितना कड़वा बोलते हैं हम

जबकि सिर्फ़ एक मकड़ा
पूरी रात टंगा रहा उसी एक जगह,
गुसलखाने के एक कोने में

हे आठ टांगों वाले धैर्यवान !
ख़ामोश गवाह
‘गुड मोर्निंग’

हम गिरते हैं
और खिरते हैं,
जब भी कोई शिखर प्रतिमान होता है भ्रष्ट I


कवि – निना कास्सिआन
संकलन- सच लेता है आकार, समकालीन रोमानियाई कविता
संपादन – आन्दीआ देलेतान्त, ब्रेंडा वाकर
हिंदी अनुवाद – रणजीत साहा
प्रकाशन – साहित्य आकादमी, 2002

मंगलवार, 11 मार्च 2014

मक्कार के नाम इनाम ( The naive rewarding of one who lies by Constanta Buzea)


वही पुरानी यात्राएँ और वही पुराने गंतव्य 
और मसूर के कटोरे पर वही पुराने कबूतर 
किसी मक्कार के नाम इनाम l 

भटक रहा हूँ मैं आराम और पवित्र वस्तुओं की तलाश में,
भरपूर और तिक्ततर आँसुओं के लिए,
विनम्रता और प्रार्थनाओं के लिए,
माताओं की समाधियों के विषाद के लिए l 

चूँकि लाद दिए गए हैं मुझ पर कुछ शब्द
औ जो लटके हुए हैं मेरी गर्दन से 
जबकि मेरा दिमाग चाह रहा है 
देना ईँट का जवाब पत्थर से 
और निकाल लेना एक दाँत के बदले पूरी की पूरी बत्तीसी l 



रोमानियाई कवयित्री - कोन्स्तान्ता बूज़ेआ  
(जन्म 29 मार्च, 1941, बुख़ारेस्त)  
संकलन - सच लेता है आकार, समकालीन रोमानियाई कविता  चयन/सम्पादन - आन्द्रीआ देलेतान्त, ब्रेण्डा वाकर   
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - रणजीत साहा   
प्रकाशक - साहित्य अकादेमी, दिल्ली, 2002

अनुवादक के मुताबिक कवयित्री का नाम कोन्स्तांत्सा बूज़ेआ है। 

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

चीख़ (Outburst by Ana Blandiana)


हर एक चीख़ पर 
निकल पड़ता है एक ईश्वर 
अपने विराट परों को लहराता 
अपने परिधान को आसमान भर में उड़ाता l 

कई तरह के हैं ईश्वर 
इस धरती पर 
हम कभी भी सक्षम नहीं हो पाएँगे 
इतना हँसने या रोने के लिए 
उन्हें लुभाने के लिए, जहाँ वे जा छुपते हैं l 

भले ही ठहाके हों या आँसू,
इनसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता :
ज़रूरी चीज़ है चीख़ l 


रोमानियाई कवयित्री - आना ब्लांडिआना (मूल नाम : ओतेलिया वालेरिया कोमां)
संकलन - सच लेता है आकार, समकालीन रोमानियाई कविता 
चयन/सम्पादन - आन्द्रीआ देलेतान्त, ब्रेण्डा वाकर 
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - रणजीत साहा 
प्रकाशक - साहित्य अकादेमी, दिल्ली, 2002