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गुरुवार, 30 जून 2022

मन (Mann by Bhawaniprasad Mishra)

मन 

हल्का करने वाले सुख 

चाहे पल या दो पल के हों 

पर उनका मिलना 

रोज जरूरी लगता है 

यह क्षणिक सुखों का जादू है 

जो बड़े-बड़े दुख ठगता है। 

                              - 7 जून, 1953 


कवि - भवानीप्रसाद मिश्र 

संकलन - भवानीप्रसाद मिश्र रचनावली 

संपादन - विजय बहादुर सिंह 

प्रकाशन - अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा.) लिमिटेड, नई दिल्ली 

                 प्रथम संस्करण, 2002 

सोमवार, 27 जून 2022

विदूषक (Clowns by Miroslav Holub translated in Hindi)


विदूषक कहाँ जाते हैं?

विदूषक कहाँ सोते हैं?

विदूषक क्या खाते हैं?

विदूषक क्या करते हैं
जब कोई नहीं
कोई नहीं क़तई
हँसता है अब और 

अम्माँ?

चेक कवि - मिरोस्लाव होलुब, 1961
संग्रह - पोएम्स : बिफोर एंड आफ्टर
चेक से अंग्रेज़ी अनुवाद - एवाल्ड (Ewald Osers)
प्रकाशन - ब्लडैक्स बुक्स, ग्रेट ब्रिटेन, 1990
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद

शनिवार, 25 जून 2022

उन्हें हड़प लो (Poem by Bhuchung D. Sonam translated in Hindi)

आपकी प्लेट में रखा बटर चिकेन 

कल तक वह मुर्गी था 

जिसके चूजे अंडों से निकले नहीं अभी 

आप स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लीजिए 


पिछली गर्मियों [में] मैंने जिस ऊँट की सवारी की थी 

वह अब चमड़े का एक बैग बन चुका है 

सजा है एक आधुनिक शोरूम में 

कुबड़ा होना भी एक श्राप है 


उस पर बहुत फबता है मस्कारा 

पर उसकी आँखों तक आने से पहले 

वह कितने ही चूहों की आँखें फोड़ चुका होता है 

चूहे अब बिल्लियों से अधिक मसकारे से डरते हैं 


बुद्ध की प्राचीन मूर्ति की नकल 

उसके आलीशान स्नानगृह में खड़ी है 

जनमानस की सामूहिक आस्था का प्रतीक 

अब रोज़ उसे मूतते हुए घूरता है 


वह दहाड़ता हुआ गर्वीला बाघ 

जो बड़ी शान से बंगाल के जंगलों में 

चहलकदमी किया करता था 

अब तुम्हारी पोशाक का बॉर्डर है 

लेकिन 

उसे पहन कर भी तुम 

बस एक भीगा हुआ कुत्ता दिखते हो। 


तिब्बती कवि - भुचुंग डी. सोनम (जन्म 1972)

संग्रह - ल्हासा का लहू, निर्वासित तिब्बती कविता का प्रतिरोध 

संकल्पना एवं अनुवाद - अनुराधा सिंह 

प्रकाशन - वाणी प्रकाशन और रज़ा फ़ाउण्डेशन, प्रथम संस्करण, 2021 


निर्वासन में रह रहे तिब्बती कवि की यह बात कहाँ नहीं लागू होती है ! बस कवि से असहमति वहाँ है जहाँ हड़पनेवाले को भीगा हुआ कुत्ता कहा गया है क्योंकि यह कुत्ते के लिए अपमानजनक है। सवाल है कि सबको हड़पने-निगलने-मसलने में लगे हुओं को क्या कहा जाए !

शुक्रवार, 24 जून 2022

गवाची लकीर (Sara Shagufta translated in Hindi)

 सारी चीज़ें खो गई हैं 

आसमान के पास भी काँटा तक नहीं रहा 

जभी तो मिट्टी में बोलने वाले बोलते नहीं 

गूँज भी गूँगी हो गई है

रब भी नहीं बोलता  

सारी चीज़ें खो गई हैं 

मेरे बर्तन 

मेरी हँसी  

मेरे आँसू 

मेरे मक्र 

सारी चीज़ें खाली हैं और खो गई हैं 

बच्चों के खिलौने 

और मेरे श्टापू का कोयला वक़्त लकीर गया है 

आँखों में कोई शक्ल नहीं रह गई है 

सारी चीज़ें खो गई हैं 

मेरे चेहरे 

मेरे रंग 

मेरे इन्साफ़ 

जाने कहाँ खो गए हैं 

दिल का चेहरा आँख हुआ जाता है 


मज़ाक पुराने हो गए हैं 

हँसी चारपाई कस रही है 

चाँद की रूनुमाई के लिए सूरज आया है 

तो आसमान खो गया है 

सुलूक भी खो गए हैं 

वो भी कभी नहीं आए 

जिनके लिए आँखें रखी थीं 

और दिल खत्म किए थे 

आँखों को रसूल  कहा था 

और दिल को रब कहा था 

सारी चीज़ें खो गई हैं 


मक्र = छल, बहाना 

रूनुमाई = मुँहदिखाई 


पाकिस्तानी शायरा - सारा शगुफ़्ता 

संग्रह - नींद का रंग 

लिप्यंतरण और संपादन - अर्जुमंद आरा 

प्रकाशन - राजकमल पेपरबैक्स, पहला संस्करण, 2022  


कुछ रोज़ पहले मैंने भोपाल की यात्रा में इस किताब को उठाया। शीर्षक ने ही अपनी तरफ ध्यान खींचा था। तब तक मुझे सारा शगुफ़्ता के बारे में कुछ खास मालूम नहीं था। अर्जुमंद आरा ने जो परिचय दिया है उसने काफी उत्सुकता जगा दी। "पाकिस्तान में नारीवादी उर्दू शायरी की एक उत्कृष्ट लेकिन बहिष्कृत सारा शगुफ़्ता" यह पहला ही वाक्य पर्याप्त था संग्रह को पढ़ जाने के लिए। ईमानदारी की बात है कि एक साँस में यह छोटा-सा संग्रह नहीं पढ़ पाई। साँस टूटती रही कविताओं में से झाँकती सारा शगुफ़्ता की ज़िंदगी का अंदाजा लगाकर। भाषा की दिक्कत भी बीच बीच में आड़े आई। यात्रा से लौटकर हिन्दी और उर्दू के शब्दकोशों को पलटा तो भी कुछ अर्थ हाथ न आए, जैसे 'गवाची' या 'श्टापू' का। सारा खुद बहुत जगह उखड़ी उखड़ी नज़र आती हैं तो तारतम्यता खोजने का मेरा प्रयास भी व्यर्थ जा रहा था। बातों का सिरा कई बार पकड़ में नहीं आया मेरे, फिर भी जो कशिश है उनमें वह दूसरी शायरी से जुदा है। बानगी के तौर पर यह ! हाँ, एक बात जो बड़ी देर तक मेरे मन में चक्कर काटती रही, वह है आँखों को लेकर सारा शगुफ़्ता के प्रयोग। उनकी फ़ेहरिस्त बनाने का मन किया। वैसे अनोखे और अजीबोगरीब वाक्य देखकर सारा की तड़प ही नहीं, ताकत का भी पता चलता है। 

गुरुवार, 23 जून 2022

मुम्बई का तिब्बती (The Tibetan in Mumbai by Tenzin Tsundue)

वह जो  तिब्बती है मुम्बई में 

विदेशी नहीं 

चाइनीज होटल 

में रसोइया है 

लोग उसे 

बीजिंग से आया हुआ चीनी समझते हैं 


गर्मियों में परेल ब्रिज के नीचे 

स्वेटर बेचता है 

लोग सोचते हैं कि 

कोई रिटायर्ड 'बहादुर' है  


मुम्बई का तिब्बती 

ज़रा तिब्बती लहजे में 

मुम्बइया गाली दे लेता है 

भाषा का संकट आते ही 

तिब्बती बोलने लगता है 

पारसी उसकी इसी बात पर हँसते हैं 


मुम्बई के तिब्बती को 

मिड-डे पढ़ना पसन्द है 

एफएम उसका पसन्दीदा है 

यह जानते हुए भी कि इसमें 

कभी तिब्बती गाना नहीं बजेगा 


वह एक सिग्नल से बस पकड़ता 

चलती ट्रेन में चढ़ता 

एक लम्बी काली गली से गुज़रते हुए 

बहुत नाराज़ हो जाता है जब 

लोग 'चिंग-चौंग, पिंग-पौंग' कहकर 

उस पर हँसते हैं 


मुम्बई का तिब्बती 

बहुत थक गया है 

उसे थोड़ी नींद चाहिए और एक सपना 

कि 11 बजे की विरार फास्ट 

उसे हिमालय ले जाये 

और 8.05 की फास्ट लोकल 

वापस पहुँचा दे चर्चगेट  

फिर उसी महानगर के उसी नव साम्राज्य में। 


तिब्बती कवि - तेनज़ीं सुण्डु 

संग्रह - ल्हासा का लहू, निर्वासित तिब्बती कविता का प्रतिरोध 

संकल्पना एवं अनुवाद - अनुराधा सिंह 

प्रकाशन - वाणी प्रकाशन और रज़ा फ़ाउण्डेशन, प्रथम संस्करण, 2021 

बुधवार, 22 जून 2022

प्यारी (Poem by Bahadur Shah Zafar)

प्यारी तेरो प्यारो आयो प्यारी 

प्यारी बातें कर प्यारे को मनाइये । 

अनेक भाँतन कर प्यारे को रिझाइए

आली ऐसी प्यारो कहाँ घर बैठे पाइये ।। 

लाइए समुझाइए कौन भाँतन 

कर सुखदे बुलाइये । 

साह बहादुर तेरे रसबस भए 

अनरस कर कर सौतन हँसाइये ।। 


शायर - बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र 

संग्रह  - मुग़ल बादशाहों की हिन्दी कविता 

संकलन एवं संपादन - मैनेजर पाण्डेय 

प्रकाशन - राजकमल पेपरबैक्स, पहला संस्करण, 2016  


यह अच्छा संकलन है। बस मुझे उलझन हो रही है हिज्जे को देखकर। कहीं 'पाइये' तो कहीं 'लाइए'। मुमकिन है कि मूल से हिन्दी में छपाई तक आते आते यह हुआ हो। अक्सर इतने हाथों से रचना गुज़रती है कि एकरूपता नहीं रह जाती है। हालाँकि हर जगह एकरूपता लाना या खोजना भी बहुत सही नहीं। 



मंगलवार, 21 जून 2022

मुल्का (Mulka by Dhoomil)

 मुल्का मियाँइन हैं 

उम्र साठ-बासठ के बीच है 

ए बचवा! ई सब कहकूत है। 

न हिन्नू मरै न मुसल्मान  

दंगा फसाद पेट भरले का गलचऊर है। 

- असल बात अउर है। 

जे सच पूछा तो परान 

ई गरीबन कै जात है। 

मुल्का क जिनगी एकर सबूत है। 

बीस बरिस बीत गयल मुल्का के। 

कुक्कुर एस गाँव-गाँव, घरे-घरे घूमते 

लेकिन कभी केहू एनसे ना पुछलेस - 

कि ए मुल्का बुजरो !

का तुहऊँ इंसान है ?


लोग राजा से रंक और रंक से राजा भयेल 

लेकिन मुल्का के दुनिया 

ई दौरी में दुकान है । 

                          - 1969 


संकलन : धूमिल समग्र, खंड 1  

संकलन-संपादन : डॉ. रत्नशंकर पाण्डेय 

प्रकाशन : राजकमल पेपरबैक्स, पहला संस्करण, 2021 

सोमवार, 20 जून 2022

लुकाछिपी (Hide-And-seek by Vasko Popa translated in Hindi)


कोई किसी और से छिपता है
छिपता है अपनी जीभ के नीचे
और दूसरा खोजता है उसे ज़मीन के नीचे

वह अपने ललाट में छिपता है
वह दूसरा खोजता है उसे आसमान में

वह छिपता है अपनी विस्मृति में
वह दूसरा खोजता है उसे घास में

खोजता है उसे खोजता है
कोई जगह नहीं जहाँ वह उसे नहीं खोजता
और खोजते हुए ख़ुद को खो देता है



सर्बियाई कवि वास्को पोपा (29.6.22 - 5.6.91)
स्रोत : https://mypoeticside.com/poets/vasko-popa-poems
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद : अपूर्वानंद 


मैक्सिको के नामी कवि ऑक्टोवियो पाज़ ने पोपा के बारे में कहा था - कवियों के पास हुनर है कि वे दूसरों के लिए बोलते हैं, मगर पोपा की नायाब खासियत यह है कि वे दूसरों की सुनते हैं। 

रविवार, 19 जून 2022

जीना 2 (On Living by Nazim Hikmet, translated In Hindi)


मान लें कि हम सख़्त बीमार हैं, हमें ज़रूरत है सर्जरी की -

जिसका मतलब यह है कि मुमकिन है कि हम उतर न पाएँ

                                 उस उजली मेज़ से।

हालाँकि नामुमकिन है उदासी न महसूस करना

                   सोचकर कुछ जल्दी जाने के ख़याल से,

फिर भी हम हँसेंगे चुटकुलों पर,

हम खिड़की के बाहर देखेंगे जानने को कि बारिश हो रही है -

और बेचैनी से इंतज़ार करेंगे

                   सबसे ताज़ा ख़बर का .. .

मान लें कि हम मोर्चे पर हैं -

         ऐसी जंग के लिए जो लड़ने लायक है और मान लो

वहाँ, उस पहले हमले में, पहले ही दिन

         हम अपने मुँह के बल गिर पड़ें, मृत।

हम इसे जानेंगे एक विचित्र क्रोध के साथ,

         फिर भी हम फ़िक्र में मरते रहेंगे

         जंग के नतीजों को लेकर, जो हो सकता है सालो साल चले।

मान लें कि हम जेल में हैं

और पचास के क़रीब हैं

और मान लो हमारे पास हैं और अठारह साल ,

          इसके पहले कि लोहे के फाटक खुलें,

फिर भी हम रहेंगे उस बाहर के साथ,

उसके लोगों और जानवरों, जद्दोजहद

और हवा के साथ

          मेरा मतलब है बाहर के साथ दीवारों के पार 

मेरा मतलब है जैसे भी और जहाँ भी हम हैं

          हमें जीना ही चाहिए मानो कि हम कभी नहीं मरेंगे।

 

तुर्की कवि नाज़िम हिकमत (1902-1963)

स्रोत : /poets.org/poem/living

मूल संकलन : Poems of Nazim Hikmet

तुर्की से अंग्रेज़ी अनुवाद : Randy Blasing and Mutlu Konuk

प्रकाशन : Persea Books

अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद : अपूर्वानंद



आज पूरे 10 साल हुए मनमाफ़िक शुरू किए हुए। 19 जून की दोपहर अनाड़ी की तरह ब्लॉग शुरू किया था अपने दोस्त कब्बू से पूछ-पूछ कर। पहले दो दिन तो ब्लॉग सिर्फ मुझे दिख रहा था। कब्बू से अपनी परेशानी बताई तो उसने सेटिंग में जाकर सर्च इंजन के सामने ला दिया था। उसके बाद मज़ा दुगुना-तिगुना-चौगुना बढ़ता गया। नशे-सा। फिर बीच में मेरा उत्साह जाता रहा कई वजहों से। मनमाफ़िक न कविता मिलती थी, न मन था। इसके बावजूद ब्लॉग ने ही मुझे कुछ-कुछ लिखने की जगह दी जो न कविता है न कहानी।

अब ब्लॉग पर वापस आई हूँ और उम्मीद कर रही हूँ कि इसकी रफ़्तार बनाए रखूँ। आज चंडीगढ़ से आते हुए ट्रेन में अपूर्वानंद ने मनमाफ़िक के लिए अनुवाद किया। इंटरनेट की गति के कारण मुश्किल पेश आई तो अनुवाद की फ़ोटो भेजी और तब उसे टाइप किया मैंने। फ़ॉण्ट और फ़ॉर्मैटिंग की समस्या ने उलझा रखा था, मगर कविता इतनी प्यारी है कि मन आनंदित है।

शनिवार, 18 जून 2022

पृथिवी-सूक्त (Prithivi Sukta translated by Mukund Lath)

 अपने-अपने घरों में 

अपनी भाषा 

अपने आचार । 


कितने अलग लोगों को 

पालती है पृथिवी 

शान्त, निश्चल धेनु की तरह। 


मुझे सहस्रधाराओं में 

उज्ज्वल धन देना। 


जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम् । 

सहश्रं धरा द्रविणस्य मे दुहां ध्रुवेव धेनुरनपस्फुरन्ती ।। 45 ।।   


संकलन : पृथिवी-सूक्त 

अनुवाद : मुकुन्द लाठ 

प्रकाशन: सेतु प्रकाशन, रज़ा फ़ाउण्डेशन  


अथर्ववेद मुझे पसंद है। इसलिए नहीं कि मेरा शोध प्रबंध उस पर है, बल्कि उसमें प्रवाहित जीवन-रस के लिए। जिन दिनों मैं एम. ए. में पढ़ रही थी वेद में रुचि जग गई थी। श्री उमाशंकर शर्मा 'ऋषि' के पढ़ाने के रुचिकर तरीके की वजह से उसमें बढ़ोत्तरी हुई। कुछ साल जब मैंने बतौर शोधार्थी वैदिक व्याकरण पढ़ाया तो वैदिक संस्कृत में मज़ा भी आने लगा। अब लगता है कि अभ्यास एकदम से छूट गया है, मगर प्रयास है कि कम से कम उठाकर आनंद तो ले लूँ। अब जबकि ब्लॉग की तरफ़ फिर मन चला गया है, आज मुकुन्द लाठ जी का अनुवाद पूरा पढ़ गई। धीरे-धीरे कुछ मनके यहाँ पेश करूँगी। कितना सुंदर और सादा अनुवाद है !

शुक्रवार, 17 जून 2022

जीना 1 (On Living by Nazim Hikmet, translated In Hindi)

 

1.   जीना कोई हँसी-खेल नहीं

    तुम्हें पूरी गंभीरता से जीना चाहिए

        उदाहरण के लिए, एक गिलहरी की तरह

मेरा मतलब है जीने के आगे और ऊपर किसी चीज़ की उम्मीद के बग़ैर,

     मेरा मतलब है जीना ही तुम्हारा पूरा काम होना चाहिए

 

जीना कोई हँसी-खेल नहीं

     तुम्हें इसे गंभीरता से लेना चाहिए,

         इतना और इतनी हद तक कि

जैसे तुम्हारे हाथ बँधे हों तुम्हारी पीठ के पीछे,

                        और तुम्हारी पीठ लगी हो दीवार से

या फिर किसी प्रयोगशाला में,

  अपने सफ़ेद कोट और सुरक्षा कवच में

  तुम मर सकते हो लोगों के लिए -

यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जिनके चेहरे तुमने कभी नहीं देखे

हालाँकि तुम जानते हो कि जीना

सबसे असल, सबसे सुंदर चीज़ है।

 

मेरा मतलब है तुम्हें जीने को इतनी गंभीरता से लेना चाहिए

  कि सत्तर की उम्र में भी, उदाहरण के लिए, तुम ज़ैतून के दरख़्त लगाओगे

  अपने बच्चों के लिए नहीं क़तई

बल्कि इसलिए कि हालाँकि तुम डरते हो मृत्यु से तुम उसपर यक़ीन नहीं करते

क्योंकि जीना, मेरा मतलब है अधिक वज़नी ठहरता है।


तुर्की कवि नाज़िम हिकमत (1902-1963) 

स्रोत : /poets.org/poem/living

मूल संकलन : Poems of Nazim Hikmet

तुर्की से अंग्रेज़ी अनुवाद : Randy Blasing and Mutlu Konuk

प्रकाशन : Persea Books


अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद : अपूर्वानंद




इस खूबसूरत कविता के एक अंश का अनुवाद करके थोड़ी देर पहले अपूर्व ने चंडीगढ़ से भेजा। यात्रा और दसियों काम के बाद देर रात इस कविता ने कितना सुकून दिया होगा, इसका अंदाजा लगा सकती हूँ। मारने-मरने, उजाड़ने की खबरों के बीच,  रोज़ाना की आपाधापी, निराशा और उदासी के बीच यह ज़िंदगी में लौटने का न्यौता है।  
और मुझे याद आई पटना के दिनों की। 1983-85 के दौरान कितनी बार हम कई दोस्त लोग रात-रात भर कविता-पोस्टर बनाया करते थे। अधिकतर प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यक्रम के लिए। उन्हीं दिनों नाज़िम हिकमत, महमूद दरवेश, ब्रेख्त, नेरुदा, काजी नजरुल इस्लाम,मायकोव्स्की आदि के साहित्य से परिचय हुआ था। उस कतार में कवयित्रियाँ बाद में आईं। इस पर ध्यान भी काफी बाद में गया।

 

अजनबी (Ajnabi by Noman Shauq)

 क्यों बोयी गयी है 

हमारे खमीर में इतनी वहशत 

कि हम इन्तजार भी नहीं कर सकते 

फलसफों के पकने का 


यहाँ क्यों उगती है 

सिर्फ शक की नागफनी ही 

दिलों के दरमियां


कौन बो देता है  

हमारी जरखेज मिट्टी में 

रोज एक नया जहर !


यकीन के अलबेले मौसम 

तू मेरे शहर में क्यों नहीं आता !



संकलन : रात और विषकन्या 

प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली 

                 दूसरा संस्करण , 2010 

इस संकलन में कवि के नाम को छोड़कर शायद ही कहीं नुक़्ता लगाया गया है। 

मंगलवार, 14 जून 2022

धरती (Earth Poem by Mahmoud Darwish, translated in Hindi)

उदास शाम एक उजड़े हुए गाँव में 
आँखें अधनींदी 
मैं याद करता हूँ तीस साल 
और पाँच युद्ध 
उम्मीद करता हूँ कि मुस्तकबिल रखेगा महफ़ूज़ 
मेरी मक्के की बालियाँ 
और गायक गुनगुनाएगा 
आग और कुछ अजनबियों के बारे में 
और शाम बस किसी और शाम की तरह होगी 
और गायक गुनगुनाएगा 


और उन्होंने उससे पूछा : 
तुम क्यों गाते हो 
और उसने जवाब दिया 
मैं गाता हूँ क्योंकि मैं गाता हूँ ... 


और उन्होंने उसका सीना टटोला 
लेकिन उसमें पा सके सिर्फ उसका दिल 
और उन्होंने उसका दिल टटोला 
लेकिन पा सके सिर्फ उसके लोग 
और उन्होंने उसका स्वर टटोला 
लेकिन पा सके सिर्फ उसकी वेदना 
और उन्होंने उसकी वेदना टटोली 
लेकिन पा सके सिर्फ उसकी जेल 
और उन्होंने उसकी जेल टटोली 
लेकिन देख सके वहाँ खुद को ही जंजीरों में बँधा हुआ 


फ़िलिस्तीनी कवि - महमूद दरवेश 
स्रोत - https://www.poemhunter.com/poem/earth-poem-3/
हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद 

सोमवार, 13 जून 2022

घात लगाए हुए बिल्ली ( Cat Lying in Wait by Shakila Azizzada)

अच्छा शगुन नहीं हैं

ये अल्फ़ाज़।


मुझे मत बतलाओ कि

स्वर्ग का दरवाज़ा

खुलता है मेरे होठों के बीच  से।

 

मेरी छातियों के बीच की दरार में

खुदा खुद लड़खड़ा जाता है।


मैं आऊँगी


और फिर

तुम्हारी साँस

मेरे भीतर साँस लेगी,

तुम्हारे फेफड़े भर जाएँगे

मेरी खुशबू से

तुम्हारी जीभ

बरसेगी, बरसेगी

बरसेगी फिर से मेरी त्वचा पर।

 

और मैं हथियार डाल दूँगी।


और इस बार

जब तुम आओगे तुम्हारी आँखों में उस चमक के साथ

मुझे चीर डालने को आमादा, तुम होगे ही

 

बिना किसी शक


उस काली बिल्ली की तरह

जो घात से अचानक छलाँग लगाती हो,

मेरा रास्ता अभी काटते हुए

तुम्हारे दरवाज़े पर उस गौरैया का शिकार करते हुए

जब तक कि वह गिर न गई

अचंभित और बंधक।

 

रसचक्र के लिए 'अफ़ग़ानी दूख्तरान' की स्क्रिप्ट पर काम करते हुए ढेर सारी रचनाओं से गुज़री मैं। उनमें से अनेकानेक को स्क्रिप्ट में शामिल नहीं कर पाई थी। उनमें से कुछ के लिए मन बहुत छटपटाया क्योंकि वे अफ़ग़ानी औरतों की खास आवाज़ थीं। ऐसी ही हैं शकीला अज़ीज़ज़ादा।

1964 में काबुल में जन्मी शकीला अपने स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही कहानियाँ और कविताएँ लिखने लगी थीं। पत्र-पत्रिकाओं में वे छपीं भी। अंतरंगता और औरत की चाहत को लेकर उन्होंने खुलकर लिखा है। काबुल विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने के बाद शकीला अज़ीज़ज़ादा ने नीदरलैंड के Utrecht विश्वविद्यालय में प्राच्य भाषाएँ एवं संस्कृति की पढ़ाई की। और अब वे वहीं रहती हैं। वे खूब लिखती हैं और कई विधाओं में उनको महारत हासिल है।

Herinnering aan niets (Memories About Nothing) नाम से उनका कविता संग्रह दरी और डच भाषा में छपा है। उन्होंने देश-विदेश में अपनी कविताओं का मंचन भी किया है। उनकी कई कविताओं का Mimi Khalvati और Zuzanna Olszewska.ने दरी भाषा से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। उनमें से एक कविता का हिन्दी अनुवाद यहाँ पेश है। अनुवादक हैं अपूर्वानंद।

स्रोत - https://www.poetrytranslation.org/poets/shakila-azizzada

 


रविवार, 12 जून 2022

मैं भरी हुई हूँ खालीपन के ख़याल से पूरी (Smoke Bloom by Nadia Anjuman)

मैं भरी हुई हूँ खालीपन के ख़याल से

 

पूरी।

 

 

एक विस्तृत अकाल

मेरी आत्मा के बुखार से तप रहे मैदानों में मुझे खौलाता है

और यह अजीब जलहीन उबाल

मेरी कविता की छवि में जीवन

उमगाता है.

 

मैं निहारती हूँ इस नई-जीवित तस्वीर को

एक विलक्षण गुलाब की

पूरे पृष्ठ पर फैली हुई लजाहट को।

 

लेकिन अभी पहली साँस ही ली है उसने

कि धुएँ के बादल

उसके चेहरे को धुँधला करने लगते हैं

और धुँआ उसकी सुगन्धित त्वचा को ग्रस लेता है।

 

अफ़ग़ानी कवयित्री - नादिया अंजुमन

काव्य संग्रह - गुले दूदी (धुएँ का फूल)

फ़रज़ाना मेरी के अंग्रेज़ी अनुवाद से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद