Translate

सियारामशरण गुप्त लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सियारामशरण गुप्त लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 30 जनवरी 2013

चरखा गीत (Charkha geet by Siyaramsharan Gupt)

चला हमारा अपना चरखा, चरखा मनका मीत,
गूँज उठा इसके भन-भनमें जन-जनका संगीत l 
          धसक रही धरती धक्कोंमें,
          पुतलीघरके उन चक्कोंमें,
          बन्ध कर लोहके लच्छोंमें,
                                     वहाँ सभी भयभीत l 
यहाँ फूट है सबकी सबसे, जन जनकी है जीत,
चला हमारा अपना चरखा, चरखा मनका मीत ll 1 ll 

सीधे सच्चे इस तकुएका पक्का पतला तार,
बढ़ बढ़कर ले सकता है यह सात समन्दर पार l 
          लोट पाट करके औरोंमें,
          जले फुँके उजड़े ठौरोंमें,
          बन बैठे जो सर मोरोंमें,
                                   भय उसका निस्सार l 
यहाँ हमारे जिस चरखेमें सकल सुखी संसार,
सीधे सच्चे इस तकुएका पक्का पतला तार ll 2 ll 

इस घर-घर-घरमें आती है उन खेतोंकी याद,
उमड़-घुमड़ आया था जिनपर सावनका उन्माद l 
           खेत-खेतमें साख भरी थी,
           आगेकी अभिलाष भरी थी,
           धरती चारों ओर हरी थी,
                                     लायी थी सम्वाद l 
जुग जुगसे है अन्न-वसनकी अमिट यहाँ मरयाद,
इस घर-घर-घरमें आती है उन खेतोंकी याद ll 3 ll 


कवि - सियारामशरण गुप्त 
किताब - सितारे (हिन्दुस्तानी पद्योंका सुन्दर चुनाव)
संकलनकर्ता - अमृतलाल नाणावटी, श्रीमननारायण अग्रवाल, घनश्याम 'सीमाब'  
प्रकाशक - हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा, तीसरी बार, अप्रैल, 1952




गुरुवार, 26 जुलाई 2012

ओछी (Ochhee by Siyaramsharan Gupt)



जल तक  गगरी  पहुँच न  पाई  घनी-घनी  यह अँधेरी ;
                                         ओछी री रसरी मेरी !
गहरा कुआँ, व्योम-तारक  वह विहँस  उठा जल में नीचे,
रीता (खाली) घट भी भारी-भारी, हतभागी  कैसे खींचे. 
लौट  गईं  जल भर-भरकर वे  सब की सब घर अपने री,
                                          ओछी री रसरी मेरी !

हुई अबेर (देर), दूर तक वन-पथ, खग-मृग झीमे-झीमे से;
किसे   पुकारूँ, खिसक  रही  है  साँझ-सुबह  री  धीमे-से.
बढ़ी  आ रही  रजनी  प्रतिपल लिए मौन  भय  की  भेरी.
                                           ओछी री रसरी मेरी !

आओ   हो  आओ, मुझको   ही  बाँधो   मेरी   रसरी   में;
बड़ी   बनूँगी   उतर  आप  ही  भर  लाऊँगी   गगरी   मैं.
रीता   घट   ले  लौट  सकेगी  कैसे  यह   प्रिय  की  चेरी;
                                           ओछी री रसरी मेरी !


कवि - सियारामशरण गुप्त 
संग्रह - पदचिह्न 
संपादक - नंदकिशोर नवल, संजय शांडिल्य 
प्रकाशक - दानिश बुक्स, दिल्ली, 2006