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शनिवार, 9 अक्टूबर 2021

मर्म (Marm by Raghuvir Sahay)

तू हतविक्रम श्रमहीन दीन

निज तन के आलस से मलीन

माना यह कुंठा है युगीन

        पर तेरा कोई धर्म नहीं ?

 

यह रिक्त-अर्थ उन्मुक्त छंद 

संस्मरणहीन जैसे सुगंध,

यह तेरे मन का कुप्रबंध 

         यह तो जीवन का मर्म नहीं ।


कवि - रघुवीर सहाय

किताब - रघुवीर सहाय रचनावली

संपादक - सुरेश शर्मा

प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली


शनिवार, 13 सितंबर 2014

चेंज (Change by Raghuvir Sahay)


किसी ने दोस्त से अपने कहा, "कुछ चेंज कम पड़ गई है ;
                                                                     क्या है ?"
दुखी मैं भी खड़ा था, कहा, "है, पर आप क्यों मुझसे 
                                                                भला लेंगे ?"
                           न आप मेरा दुख जानें 
                           न मैं दुख आपका जानूँ। "


कवि - रघुवीर सहाय 
किताब - रघुवीर सहाय रचनावली 
संपादक - सुरेश शर्मा 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 2000 

सोमवार, 13 जनवरी 2014

लाखों का दर्द (Lakhon ka dard by Raghuvir Sahai)

लखूखा आदमी दुनिया में  रहता है 
मेरे उस दर्द से अनजान जो कि हर वक़्त 
मुझे रहता है हिन्दी में दर्द की सैंकड़ों 
कविताओं के बावजूद 
 
और लाखों आदमियों का जो दर्द मैं जानता हूँ 
उससे अनजान 
लखूखा आदमी दुनिया में रहे जाता है l 
  
कवि - रघुवीर सहाय
किताब - रघुवीर सहाय रचनावली, खंड - 1 में 'आत्महत्या के विरुद्ध' से 
संपादक - सुरेश शर्मा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2000

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

बड़ी हो रही है लड़की (Badi ho rahi hai ladki by Raghuvir Sahai)


जब वह कुछ कहती है
उसकी आवाज़ में
एक कोई चीज़
मुझे एकाएक औरत की आवाज़ लगती है जो
अपमान बड़े होने पर सहेगी

वह बड़ी होगी
डरी और दुबली रहेगी
और मैं न होऊँगा
वे किताबें वे उम्मीदें न होंगी
जो उसके बचपन में थीं
कविता न होगी साहस न होगा
एक और ही युग होगा जिसमें ताक़त ही ताक़त होगी
और चीख़ न होगी

लम्बी और तगड़ी बेधड़क लड़कियाँ
धीरज की पुतलियाँ
अपने साहबों को सलाम ठोंकते मुसाहबों को ब्याहकर
आ रही होंगी जा रही होंगी
वह खड़ी लालच में देखती होगी उनका क़द

एक कोठरी होगी
और उसमें एक गाना जो ख़ुद गाया नहीं होगा किसी ने
क़ैदी से छीनकर गाने का हक़ दे दिया गया होगा वह गाना
कि उसे जब चाहो तब नहीं जब वह बजे तब सुनो
बार-बार एक-एक अन्याय के बाद वह बज उठता है

वह सुनती होगी मेरी याद करती हुई
क्योंकि हम कभी-कभी साथ-साथ गाते थे
वह सुर में मैं सुर के आसपास

एक पालना होगा
वह उसे देखेगी और अपने बचपन की यादें आयेंगी
अपने बचपन के भविष्य की इच्छा
उन दिनों कोई नहीं करता होगा
वह भी न करेगी



कवि - रघुवीर सहाय  
संकलन - रघुवीर सहाय : प्रतिनिधि कविताएँ  
संपादक - सुरेश शर्मा  
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1994



लड़की को बड़ी होने के पहले ही सबकुछ झेलना पड़ता है ! आज दिल्ली की दुर्घटना उस अंतहीन श्रृंखला की एक कड़ी है !



सोमवार, 11 मार्च 2013

अगर कहीं मैं तोता होता (Agar kahin main tota hota by Raghuvir Sahai)

          
          अगर कहीं मैं तोता होता 

तोता होता तो क्या होता ?
          तोता होता l 
होता तो फिर ?
          होता, 'फिर' क्या ?
          होता क्या ? मैं तोता होता l 
          तोता तोता तोता तोता 
          तो तो तो तो ता ता ता ता 
          बोल पट्ठे सीता राम 



कवि - रघुवीर सहाय  
संकलन - रघुवीर सहाय : प्रतिनिधि कविताएँ  
संपादक - सुरेश शर्मा  
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1994

रविवार, 20 जनवरी 2013

अतुकांत चंद्रकांत (Atukant Chandrakant by Raghuvir Sahai)


चंद्रकांत बावन में प्रेम में डूबा था 
सत्तावन में चुनाव उसको अजूबा था 
बासठ में चिंतित उपदेश से ऊबा था 
सरसठ में लोहिया था और ...और क्यूबा था 
फिर जब बहत्तर में वोट पड़ा तो यह मुल्क नहीं था 
हर जगह एक सूबेदार था हर जगह सूबा था 

अब बचा महबूबा पर महबूबा था कैसे लिखूँ 


कवि - रघुवीर सहाय  
संकलन - रघुवीर सहाय : प्रतिनिधि कविताएँ  
संपादक - सुरेश शर्मा  
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1994




शनिवार, 5 जनवरी 2013

औरत की ज़िन्दगी (Aurat ki zindagi by Raghuvir Sahay)

कई कोठरियाँ थीं क़तार में
उनमें किसी में एक औरत ले जायी गयी
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया

उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा
                              
                (1972)
कवि - रघुवीर सहाय 

संकलन - रघुवीर सहाय : प्रतिनिधि कविताएँ 

संपादक - सुरेश शर्मा 

प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1994




शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

अभी तक खड़ी स्त्री (Abhi tak khadi stree by Raghuvir Sahai)


ग्रीष्म फिर आ गया 
फिर हरे पत्तों के बीच 
खड़ी है वह 
ओंठ नम 
और भरा-भरा-सा चेहरा लिये 
बदली की रोशनी-सी नीचे को देखती 

निरखता रह 
उसे कवि 
न कह 
न हँस 
न रो 
कि वह 
अपनी व्यथा इस वर्ष भी नहीं जानती।
                                                  - 1959


कवि - रघुवीर सहाय 
संकलन - रघुवीर सहाय : प्रतिनिधि कविताएँ 
संपादक - सुरेश शर्मा 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1994

रविवार, 9 सितंबर 2012

अधिनायक (Adhinayak by Raghuvir Sahay)



राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरिचरना गाता है l
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चँवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है l
पूरब-पच्छिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमग़े कौन लगाता है l
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज़ बजाता है l


कवि - रघुवीर सहाय
किताब - रघुवीर सहाय रचनावली, खंड - 1 में 'आत्महत्या के विरुद्ध' से 
संपादक - सुरेश शर्मा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2000

रविवार, 26 अगस्त 2012

क़स्बे में दिन ढले (Kasbe mein din dhale by Raghuvir Sahay)



क़स्बे में दिन ढले 
युवती के चेहरे पर
लालटेन की आभा :
ऊब और कोहरे में
खोया हुआ आँगन 
करती है पार उसे रोशनी लिए युवती.


कवि - रघुवीर सहाय 
संकलन - कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1989