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बुधवार, 31 अगस्त 2022

ढलती हुई आधी रात (Dhalati hui aadhi raat by Firaq Gorakhpuri)


ये कैफ़ो-रंगे-नज़ारा, ये बिजलियों की लपक 
कि जैसे कृष्ण से राधा की आंख इशारे करे 
वो शोख इशारे कि रब्बानियत भी जाये झपक 
जमाल सर से क़दम तक तमाम शोअला है 
सुकूनो-जुंबिशो-रम तक तमाम शोअला है 
मगर वो शोअला कि आंखों में डाल दे ठंडक 


कैफ़ो-रंगे-नज़ारा - दृश्य की मादकता और रंग 
रब्बानियत - परमात्मा 
जमाल - सौंदर्य 
सुकूनो-जुंबिशो-रम - निश्चलता, गति और भाग-दौड़ 


शायर - फ़िराक़ गोरखपुरी
संकलन - उर्दू के लोकप्रिय शायर : फ़िराक़ गोरखपुरी
संपादक - प्रकाश पंडित
प्रकाशक - हिन्द पॉकेट बुक्स, दिल्ली, नवीन संस्करण 1994 

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

धुरी पर (Dhuree par by Gyanendrapati)

धर्म की धुरी पर 

घूम रही है पृथ्वी 

मर्म की धुरी पर 

जीवन की परिक्रमा कर रहा है कवि। 


कवि - ज्ञानेन्द्रपति 

संग्रह - कविता भविता 

प्रकाशन - सेतु प्रकाशन, दिल्ली, 2020 

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

नारी ( Naari by Nagathihalli Ramesh translated from Kannada)

 नारी ... 

चुन लिया करती है बुरे से भले को 

वह सब कुछ नहीं निगलती 

जो भी मिलता है उसे तौलती है 

परखती है तराशती है 

लेकिन मर्द ? वह तो भोगी है 

सबकुछ चाटनेवाला 

किसी में न बाँटनेवाला 


मर्द की इन्हीं ऐयाशी [भरी] आदतों के कारण 

कई सभ्यताएँ उभरीं और डूब गयीं 

कई राजपाट बने और ढह गये 


दुनिया की छल-कपटों के बीच बैठी यह औरत 

तसल्ली देती है मर्द के भरम, सपने [सपनों], उसूलों को 

हाथ थामे रहती है अपनी आखरी [आखिरी] साँस तक 

साथ-साथ चलती है सभ्यताओं से सभ्यताओं तक ... 


कन्नड़ कवि - नागतिहल्ली रमेश 

संग्रह - सागर और बारिश 

हिन्दी अनुवाद - गिरीश जकापुरे 

प्रकाशन - सृष्टि प्रकाशन, बंगलोर, 2015 


काफी समय लगा इस कन्नड़ कवि की भाषा और लय को पकड़ने में। कई बार पढ़ा। बहुत अलग किस्म के अनुभव और अभिव्यक्तियाँ हैं। अनुवाद और किताब की सज्जा भी हिन्दी किताबों से भिन्न है। रसास्वादन के लिए रमना पड़ता है और मेहनत लगती है, यह इस बार भी महसूस हुआ। खोजकर और पढ़ना है नागतिहल्ली रमेश को तभी पूरा आनंद आएगा। अभी एक कविता इस संग्रह से जो सीधे सीधे अपनी बात कहती है और हम उत्तर भारतीयों के मन-मिजाज़ वाली भाषा में अनूदित है। 

सोमवार, 22 अगस्त 2022

मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib in Hindi)

दिलज़ ताबे बला बिगुज़ाद-ओ-खूं कुन 

ज़ि-दानिश का नक़शायद जुनूँ  कुन 


दिल को अपने 

मुश्किलों की 

आँच पर 

पिघला के तुम 

लोहू बना दो। 


व्यर्थ शंकाएँ 

कभी 

दिल में न लाओ। 


विवेक 

और बुद्धि से जब 

कुछ काम न निकले 

तो फिर 

दीवाने बन जाओ।   


शायर - मिर्ज़ा ग़ालिब 

मूल फ़ारसी से हिन्दी अनुवाद - सादिक़ 

संग्रह - चिराग़-ए-दैर, बनारस पर केन्द्रित कविताएँ 

प्रकाशन - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2018 

रज़ा पुस्तक माला : कविता 


शनिवार, 20 अगस्त 2022

जो बचा रह गया (The Survivor by Tadeusz Różewicz In Hindi)


मैं चौबीस का हूँ
क़त्ल को ले जाया गया
मैं बच गया।

जो आगे दिए जा रहे हैं वे खाली (अर्थहीन) पर्यायवाची हैं:
मनुष्य और पशु
प्रेम और घृणा
मित्र और शत्रु
अंधकार और प्रकाश।

मनुष्यों और पशुओं को मारने का तरीक़ा एक ही है
मैंने यह देखा है:
ट्रक काट डाले गए आदमियों से ठुँसे हुए
जो बचाए नहीं जाएँगे।

विचार मात्र शब्द हैं:
भलाई और अपराध
सच और झूठ
सुंदरता और कुरूपता
साहस और कायरता।

भलाई और अपराध एक ही बराबर हैं
मैंने यह देखा है:
उस आदमी में जो दोनों ही था
अपराधी और भला।

मैं खोज रहा हूँ एक अध्यापक और गुरु
काश वह मेरी दृष्टि सुनने की ताक़त और वाणी बहाल कर दे वापस
काश वह फिर से नाम दे वस्तुओं और विचारों को
काश वह अलग करे अंधकार को प्रकाश से।

मैं चौबीस का हूँ
क़त्ल को ले जाया गया
मैं बच गया।



पोलिश कवि - तादयूश रुज़ेविच
संग्रह - 'होलोकास्ट पोएट्री'
संकलन और प्रस्तावना - हिल्डा शिफ़
पोलिश से अंग्रेज़ी अनुवाद - ऐडम ज़ेर्निआव्स्की
प्रकाशक - सेंट मार्टिन्स ग्रिफिन, 1995
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - अपूर्वानंद

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

तिरहुति लोकगीत में कृष्ण और राधा (Krishna and Radha in Tirhuti folksong)

साजि चललि सब सुन्दरि रे 

मटुकी शिर भारी 

धय मटुकी हरि रोकल रे 

जनि करिय वटमारी 

अलप वयस तन कोमल रे 

रीति करय न जानै 

धाए पड़लि हरि चरणहि रे 

हठ तेजह मुरारी 

निति दिन एहि विधि खेपह हे 

तोहे बड़ बुधिआरी 

आज अधर रस दय लेह हे 

पथ चलह झटकारी 

झाँखिय खुंखिय राधा वैसलि रे 

वैसलि हिय हारी 

नंदलाल निर्दय भेल रे 

हिरदय भेल भारी 

भनहिं 'कृष्ण' कवि गोचर करु रे 

सुनु गुनमंति नारी 

आज दिवस हरि संग रहु रे 

अवसर जनु छाँड़ी 


व्रजांगनाएँ शिर पर भारी गागर लिए सज-धज कर निकलीं। श्रीकृष्ण ने गागर पकड़ कर रास्ता रोक लिया। 

हे कृष्ण, राहजनी मत करो। मेरी उम्र थोड़ी है, और शरीर कोमल। मैं रीति का मर्म नहीं जानती। इस प्रकार वे सुन्दरियाँ श्रीकृष्ण के चरण पकड़ कर तरह-तरह से अनुनय-विनय करने लगीं। हे कृष्ण, तुम अपना यह हठ छोड़ दो। 

श्रीकृष्ण ने कहा - हे व्रजांगने, तुम नित्य इसी तरह टालमटोल करती हो। सचमुच तुम बड़ी चतुर हो। आज अपने अधर-रस का दान दो, और तब प्रसन्न होकर अपना रास्ता लो। 

राधा इस आकस्मिक विपत्ति से मुक्त होने के लिए इधर-उधर झाँक कर और खाँस कर अन्त में नाउम्मीद हो कर बैठ गई। 

हे सखी, श्रीकृष्ण कितने कठोर हैं। उनकी इस नाजायज़ हरकत से दुख होता है। 

कवि 'कृष्ण' कहते हैं - हे गुणवन्ती, सुनो। तुम आज श्रीकृष्ण के साथ प्रेमपूर्वक दिन बिताओ, और इस अवसर पर लाभ उठाने से मत चूको। 


यह तिरहुति लोकगीत है। राम इकबाल सिंह 'राकेश' के शब्दों में, "'झूमर' और 'सोहर' को यदि हम ग्राम-साहित्य-निर्झरिणी का मधुर कलकल नाद कहें, तो मिथिला के 'तिरहुति' नामक गीत को फागुन का अभिसार कहना पड़ेगा। स्वाभाविकता, सरलता, प्रेमपरता का सामंजस्य और उच्च भावों का स्पष्टीकरण - ये 'तिरहुति' की विशेषताएँ हैं। इसकी रचना पद्धति मुक्तक काव्य की तरह भावों की उन्मुक्त पृष्ठभूमि पर मर्यादित है।"


संग्रह - मैथिली लोकगीत
संग्रहकर्ता और संपादक - राम इकबाल सिंह 'राकेश'
भूमिका-लेखक - पंडित अमरनाथ झा 
प्रकाशक - हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग