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मंगलवार, 4 जून 2013

भजS गोविन्द (Bhaja govinda by Bhikhari Thakur)


भजS गोविन्द गोविन्द भाई, भजS गोविन्द भाई !
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, सरकार सोझा भाव बतलाई l
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, सब कोटिनों तीरथ होई जाई ll
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, बस जगत में सगरी गवाई l
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, कलयुग कर मस्तक नवाई ll
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, जरि छार पाप होई जाई l
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, जम-दूत भगीहन सरमाई ll
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, बाटे लउकत सहज उपाई l
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, फिर अइसन औसर ना आई ll
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, एक नाम बिन जइब ठगाई l
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, कहिओ होई अचके विदाई ll
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, नर-तन पा के कइल तूँ काई l
भजS गोविन्द गोविन्द भाई, 'भिखारीदास' यह कहत नाई ll


कवि - भिखारी ठाकुर
किताब - भिखारी ठाकुर रचनावली

संपादक - नागेन्द्र प्रसाद सिंह
प्रकाशक - बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, 2005

रविवार, 3 मार्च 2013

राधेश्याम बहार (Radheshyam bahar by Bhikhari Thakur)


सुनिलहमार कहल, मन बा तोहार दहल ;
                 उमिर मोहन के नादान बा हो गोरिया !
कइसे हेराइल बूध, बोलत नइखू बोली सूध ;
                 नखऊ बिचार बड़-छोट के हो गोरिया !
बबुआ नादान बाटे, लगलू कसीदा काटे ;
                 झूठहूँ के लहरा लगवलू हो गोरिया !
झगरे के हऊ मन, कतिना बा तोरा धन ;
                 हन-हन झन-झन छोड़ि दऽ हो गोरिया !
नाहीं त जुलुम होई, राजाजी से कही कोई ;
                 तब नाहीं बसबू नगर में हो गोरिया !
लगन हमार लखि, जरत-मरत बाडू सखी ;
                 अनभल(अशुभ) छोड़ि दऽ मनावल हो गोरिया !
परल बाडू हाथवा में, चलऽ हमरा साथवा में ;
                 कहब तोहरा भाई-भउजाई से हो गोरिया !
चलऽ बबुआ दूनों भइया, जहँवाँ इनिकर हवहिन मइया ;
                 नीके पुरवासाठ करिके छोड़ब हम हो गोरिया !
मुँहवाँ के राखऽ लाली, काली कलकत्ता वाली ;                              

                 कहत 'भिखारी' नाई गाइ के हो गोरिया ! 

कवि - भिखारी ठाकुर
किताब - भिखारी ठाकुर रचनावली
प्रकाशक - बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, 2005

यह गीत 'राधेश्याम बहार' (कृष्ण-लीला या रास-लीला) संगीत-नृत्य रूपक से लिया गया है और यशोदा का कथन है। गोकुल की युवतियाँ माँ यशोदा से कृष्ण की छेड़छाड़ की शिकायत करती हैं तो यशोदा कृष्ण से पूछती हैं कि "बबुआ सुनहु बात, डगर आवत-जात ; केकरो से बोले के गरज का दुलरुआ?" इस पर कृष्ण अपनी सफाई देते हैं कि सखी ही उन्हें तंग कर रही थीं और "केहू हाथ धइल कसि के, केहू बोलल हँसि-हँसि के ; उटुकी-खुटुकिया (उकसानेवाली) चलावल केहू हो मइया !" इतना सुनना था कि "यशोदाजी बेटा का कहला में आ गइली आ लगली सखी लोग के सुनावे" !

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

गीत (Geet by Bhikari Thakur)


सुनील हमार बात, नइखे नइहर रहल जात; जाइके करब बन में भजन हो भउजिया!
सेज मिरिगा के चाल, ओढ़ना भेड़ी के बाल; जंगल में मंगल उड़ाइब हो भउजिया!
सारी गेरुआ के रंग, मलि के भभूत अंग; गलवा में तुलसी के मलवा भउजिया!
छूरा से छिला के केस, धरबि जोगिन के भेस; लेइब एक हाथ में सुमिरनी भउजिया!
नइहर से छूटल लाग, खाइब कंद-मूल-साग; अनवाँ बउरावत बा बेइमानवाँ भउजिया!
'पिउ-पिउ' करब सोर, मन लागल बाटे मोर; बाँवाँ करवा में सोभी कमंडलवा भउजिया!
बानी पर धेयान दीहन, जंगल में खोज लिहन; दायानिधि चरन का चेरी के भउजिया!
कहत 'भिखारीदास', कातिक से चार मास; जाड़ में लेहब जलसयन हो भउजिया!
फागुन से महीना चारि, धूँई चउरासी जारि; ताहि बीच में हरिगुन गाइब हो भउजिया!
रितु बरसात भर, करि-करि हर-हर; गउरी-गनेस के पूजब  हो भउजिया !


सुमिरनी = स्मरण की माला ; जलसयन = जलशयन, हठयोग की एक विधि ; चउरासी  =  चौरासी अग्नि, हठयोग की एक विधि 

कवि - भिखारी ठाकुर
किताब - भिखारी ठाकुर रचनावली
प्रकाशक - बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, 2005


प्रस्तुत गीत 'ननद-भउजाई' नाटक से लिया गया है। इसमें तीन पात्र हैं - अखजो (एक अज्ञातयौवना गँवई स्त्री), उसकी भउजाई (बड़े भाई की पत्नी) और उसका पति चेंथरू (झंझटपुर का रहनेवाला युवक) l अखजो की शादी बालपन में हो गई थी l अभी गवना (गौना) नहीं हुआ है l