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गुरुवार, 18 जुलाई 2013

झिलमिल तारे (Jhilmil taare by Subhadra Kumari Chauhan)

कर रहे प्रतीक्षा किसकी हैं झिलमिल-झिलमिल तारे ?
धीमे प्रकाश में कैसे तुम चमक रहे मन मारे ll
अपलक आँखों से कह दो किस ओर निहारा करते ?
किस प्रेयसि पर तुम अपनी मुक्तावलि वारा करते ?
करते हो अमिट प्रतीक्षा, तुम कभी न विचलित होते l 
नीरव रजनी अंचल में तुम कभी न छिप कर सोते ll 
जब निशा प्रिया से मिलने, दिनकर निवेश में जाते l 
नभ के सूने आँगन में तुम धीरे-धीरे जाते ll 
विधुरा से कह दो मन की, लज्जा की जाली खोलो l 
क्या तुम भी विरह विकल हो, हे तारे कुछ तो बोलो ll 
मैं भी वियोगिनी मुझसे फिर कैसी लज्जा प्यारे ?
कह दो अपनी बीती को हे झिलमिल-झिलमिल तारे !



कवयित्री - सुभद्राकुमारी चौहान
संग्रह - मुकुल तथा अन्य कविताएँ
प्रकाशन - हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1980

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

शिशिर-समीर (Shishir-sameer by Subhadra Kumari Chauhan)

शिशिर-समीरण, किस धुन में हो,
कहो किधर से आती हो ?
धीरे-धीरे क्या कहती हो ?
या यों ही कुछ गाती हो ?

क्यों खुश हो ? क्या धन पाया है ?
क्यों इतना इठलाती हो ?
शिशिर-समीरण ! सच बतला दो,
किसे ढूँढने जाती हो ?

मेरी भी क्या बात सुनोगी,
कह दूँ अपना हाल सखी ?
किन्तु प्रार्थना है, न पूछना,
आगे और सवाल सखी ll

फिरती हुई पहुँच तुम जाओ,
अगर कभी उस देश सखी !
मेरे निठुर श्याम को मेरा
दे देना सन्देश सखी !

मिल जावें यदि तुम्हें अकेले,
हो ऐसा संयोग सखी !
किन्तु देखना वहाँ न होवें
और दूसरे लोग सखी !!

खूब उन्हें समझा कर कहना
मेरे दिल की बात सखी l
विरह-विकल चातकी मर रही
जल-जल कर दिन रात सखी !!

मेरी इस कारुण्य दशा का
पूरा चित्र बना देना l
स्वयं आँख से देख रही हो
यह उनको बतला देना !!

दरस-लालसा जिला रही है,
कह देना, समझा देना l
नासमझी यदि कहीं हुई हो
तो उसको सुलझा देना ll

कहना किसी तरह वे सोचें
मिलने की तदबीर सखी l
सही नहीं जाती अब मुझसे
यह वियोग की पीर सखी ll

चूर-चूर हो गया ह्रदय यह
सह-सह कर आघात सखी !
शिशिर-समीरण भूल न जाना l
कह देना सब बात सखी ll 


कवयित्री - सुभद्राकुमारी चौहान
संग्रह - मुकुल तथा अन्य कविताएँ
प्रकाशन - हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1980

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

नीम (Neem by Subhadra Kumari Chauhan)


सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूं तुझे l
तुहि  जानकर अति  लाभकारी  हर्ष  होता है मुझे ll
ये लहलही  पत्तियाँ हरी  शीतल  पवन  बरसा रहीं l
निज मन्द  मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं ll
हे नीम !  यद्यपि  तू  कडू नहिं रंच मात्र मिठास है l
उपकार  करना   दूसरों  का  गुण  निहारे  पास है ll
नहिं रंच मात्र सुवास है, नहिं फूलती सुन्दर कली l
कडुवे फलों  अरु  फूल में,  तू  सर्वदा  फूली फली ll
तू   सर्वगुणसंपन्न     है, तू जीव  हितकारी  बड़ी l
तू   दुखःहारी  है  प्रिये !   तू   लाभकारी   है  बड़ी ll
तू   पत्तियों  से  छाल से  भी   काम  देती  है  बड़ा l
है  कौन ऐसा घर  यहाँ  जहाँ काम तेरा नहिं पड़ा ll
वे  जन  तिहारे  ही शरण  हे  नीम ! आते हैं सदा l
तेरी कृपा  से  सुख  सहित  आनन्द  पाते  सर्वदा ll
तू  रोगमुक्त  अनेक  जन  को   सर्वदा  करती रहै l
इस  भाँति से उपकार  तू हर  एक का करती रहै ll
प्रार्थना  हरि  से करूँ, हिय  में  सदा यह आश  हो l 
जब तक रहैं नभ चन्द्र-तारे, सूर्य का परकास हो ll
तब  तक  हमारे  देश  में  तुम सर्वदा  फूला  करो l
निज वायु शीतल से पथिक जन का ह्रदय शीतल करो ll

                                 कवयित्री - सुभद्राकुमारी चौहान
                                 संग्रह - मुकुल तथा अन्य कविताएँ
                                 प्रकाशन - हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1980

* यह कविता सुभद्राकुमारी चौहान की पहली कविता है, जब उनकी उम्र नौ साल की थी. यह 'मर्यादा', जून-जुलाई, 1913 में छपी थी.