हम अनिकेतन, हम अनिकेतन
हम तो रमते राम हमारा क्या घर, क्या दर, कैसा वेतन ?
अब तक इतनी योंही काटी, अब क्या सीखें नव परिपाटी
कौन बनाये आज घरौंदा हाथों चुन-चुन कंकड़-माटी
ठाठ फकीराना है अपना बाघाम्बर सोहे अपने तन ?
देखे महल, झोंपड़े देखे, देखे हास-विलास मज़े के
संग्रह के सब विग्रह देखे, जँचे नहीं कुछ अपने लेखे
लालच लगा कभी पर हिय में मच न सका शोणित-उद्वेलन !
हम जो भटके अब तक दर-दर, अब क्या खाक बनायेंगे घर
हमने देखा सदन बने हैं लोगों का अपनापन लेकर
हम क्यों सने ईंट-गारे में हम क्यों बने व्यर्थ में बेमन ?
ठहरे अगर किसीके दर पर कुछ शरमाकर कुछ सकुचाकर
तो दरबान कह उठा, बाबा, आगे जा देखो कोई घर
हम रमता बनकर बिचरे पर हमें भिक्षु समझे जग के जन !
हम अनिकेतन !
- 1 अप्रैल, 1940
कवि - बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
संकलन - आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि : 'नवीन'
संपादक - भवानीप्रसाद मिश्र
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली
Great collection..
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंमिटटी का तन मस्ती का मन क्षण भर यह जीवन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
Kawi Ka thath Kaisa hai
जवाब देंहटाएंकवि के अनुसार उसका अब तक का जीवन कैसा रहा है
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