छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले ! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन ?
भूल अभी से इस जग को !
तज कर तरल तरंगों को,
इन्द्रधनुष के रंगों को,
तेरे भ्रूभंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन ?
भूल अभी से इस जग को !
कोयल का वह कोमल बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,
कह, तब तेरे ही प्रिय स्वर से कैसे भर लूँ, सजनि, श्रवण ?
भूल अभी से इस जग को !
ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
सुधा-रश्मि से उतरा जल,
ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन ?
भूल अभी से इस जग को !
(1918)
कवि - सुमित्रानंदन पन्त
संकलन - आधुनिक कवि
प्रकाशक - हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग, 1994
मोह कविता का अनुवाद कीजिए
जवाब देंहटाएं@Hindikhoj_Glimpses mera youtube channel hai wha maine shre sumitranandan pant ji ki kavita ka anuvad kiya hai aap wha dekh skte hai unki aur bhi kavita
हटाएंकोशिश अच्छी है।
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