हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे l
कवि - विनोदकुमार शुक्ल
संकलन - अतिरिक्त नहीं
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
waah....
जवाब देंहटाएंShukriya...yah kavita yahan daalne ke liye.
जवाब देंहटाएंhatasha ke liye chhattisgarhi bhasha men koi word hai?
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